सृष्टि के आदिकाल से ही भारतीय पृथ्वी को माता सदृश्य मान धरित्री माता की पूजन- अर्चन, वंदन, नमन करते रहे हैं। पृथ्वी के पर्यावरण, जीव -जगत, चर- अचर के संबंधों की वैज्ञानिकता, आवश्यकता, महत्ता को समझते हुए संसार के कल्याण के हित में उपयोग में लाते रहे हैं। वैदिक मंत्रों के माध्यम से पृथ्वी के आधिभौतिक और आधिदैविक दोनों रूपों का स्तवन करते रहे हैं। यहां सम्पूर्ण पृथ्वी ही माता के रूप में मान्य, पूज्य और वंद्य हुई है।
22 अप्रैल- विश्व पृथ्वी दिवस
भूत और भविष्यत सभी काल में सत्यकर्मी, सत्यज्ञानी, जितेंद्रिय, ईश्वर और विद्वानों से प्रीति करने वाले चतुर पुरुष पृथ्वी पर उन्नति करते हैं। इसीलिए मनुष्यों को सत्य, ऋत, दीक्षा, ब्रह्म व यज्ञमय जीवन जीते हुए इस पृथ्वी का धारण करना चाहिए, उपयोग करना चाहिए। इससे पृथ्वी भूत व भविष्य अर्थात सम्पूर्ण जीवन को उज्ज्वल बनाएगी, प्रकाशमय जीवन को प्राप्त कराएगी और हम सब परस्पर प्रेम से इस विस्तृत पृथ्वी पर रह पाएंगे। विचारशील मनुष्य पृथ्वी पर ऊंचे- नीचे और सम स्थानों में विघ्नों को मिटाकर अन्न आदि पदार्थ प्राप्त करके कार्यसिद्धि करते जाते हैं। पृथ्वी विशाल है। पृथ्वी के उच्चस्थल, ढलान व समस्थल बहुत हैं। वे भिन्न-भिन्न स्वभाव वाले व्यक्तियों के रहने के लिए पर्याप्त हैं। यह पृथ्वी विविध औषधियों को जन्म देकर हमें शक्ति सम्पन्न बनाती है और सफल करती है। समुद्र, नदी, कूप और वृष्टि के जल, अन्न खेती आदि से नौका, यान, कलायंत्र आदि में अनेक प्रकार उपकार लेने वाले मनुष्य सब जगत को आनन्द देकर श्रेष्ठ पद पाते हैं। सब ओर दृष्टि फैलाकर अन्न आदि पदार्थ प्राप्त करके सब प्राणियों की रक्षा करने वाले इस भूमि पर गौ, बैल, अश्व, अन्न आदि पदार्थों से परिपूर्ण रहते हैं।
जिस प्रकार पूर्वजों ने विघ्नों को हटाकर कर्तव्य करके ऐश्वर्य पाया है, इसी प्रकार मनुष्य पुरुषार्थ करके ऐश्वर्यवान और प्रतापवान होते हैं। सृष्टि के आदिकाल से ही भारतीय पृथ्वी को माता सदृश्य मान धरित्री माता की पूजन- अर्चन, वंदन, नमन करते रहे हैं। पृथ्वी के पर्यावरण, जीव -जगत, चर- अचर के संबंधों की वैज्ञानिकता, आवश्यकता, महत्ता को समझते हुए संसार के कल्याण के हित में उपयोग में लाते रहे हैं। वैदिक मंत्रों के माध्यम से पृथ्वी के आधिभौतिक और आधिदैविक दोनों रूपों का स्तवन करते रहे हैं। यहां सम्पूर्ण पृथ्वी ही माता के रूप में मान्य, पूज्य और वंद्य हुई है। इसलिए माता की इस महामहिमा को हृदयांगम करके लोग उससे उत्तम वर प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
वर्तमान में संसार में पृथ्वी और पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता, महत्ता व उपयोगिता के प्रति जागरूकता के प्रशस्तिकरण हेतु प्रतिवर्ष 22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस का आयोजन करने की परिपाटी 1970 ईस्वी से अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन की प्रेरणा से चल पड़ी है। इस दिवस पर ग्लोबल वार्मिंग के बारे में पर्यावरणविदों के माध्यम से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों के संदर्भ में जानकारी प्रस्तुत किए जाने से इस दिवस की महता बढ़ जाती है। विश्व पृथ्वी दिवस जीवन संपदा को बचाने व पर्यावरण को सुरक्षित, संरक्षित, संवर्द्धित रखने के बारे में जागरूक करता है।
उल्लेखनीय है कि सृष्टि के आदिकाल से ही पृथ्वी पूजनीय, वंदनीय व महनीय रही है, और इसके संरक्षण, संवर्द्धन, पुष्पन-पल्लवन के प्रति भारतीय प्रारम्भिक काल से ही जागरूक रहे हैं। सृष्टि के आदिग्रंथ वेद में भी इसकी महिमागान के अनेक सूक्त निबद्ध हैं। अथर्ववेद का बारहवें काण्ड का प्रथम सूक्त तो पृथ्वी के नाम ही समर्पित है। इसे पृथ्वी सूक्त कहा गया है, और इसमें कुल 63 मंत्र हैं। इस सूक्त को पृथ्वी सूक्त, भूमि सूक्त तथा मातृ सूक्त भी कहा जाता है। पृथ्वी के पर्यावरण, जीव जगत, चर अचर के संबंधों की जो वैज्ञानिकता अथर्ववेद 12/1 के मंत्रों में वर्णित है, वह वर्तमान युग में आज भी प्रासंगिक बनी हुई है। अथर्ववेद में अत्यंत महत्वपूर्ण रखने वाली पृथ्वी सूक्त राष्ट्रीय अवधारणा तथा वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को संरक्षित, सुरक्षित, संवर्द्धित, विकसित, पोषित एवं फलित करने वाली अत्यन्त उपयोगी सूक्त है।
इस सूक्त में पृथ्वी के स्वरूप एवं उसकी उपयोगिता, मातृभूमि के प्रति प्रगाढ़ भक्ति के संबंध में विशद वर्णन अंकित है। पृथ्वी सूक्त के मंत्रदृष्टा ऋषि अथर्वा हैं। गोपथ ब्राह्मण के अनुसार अथर्वन् का शाब्दिक अर्थ गतिहीन या स्थिर है। पृथ्वी हमारी माता है और हम इसके पुत्र हैं- कहकर भूमि के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए पृथ्वी सूक्त में कहा गया है कि देवता जिस भूमि की रक्षा उपासना करते हैं वह मातृभूमि हमें मधु सम्पन्न करे। इस पृथ्वी का हृदय परम आकाश के अमृत से सम्बंधित रहता है। वह भूमि हमारे राष्ट्र में तेज बल बढ़ाये। पृथ्वी तत्व की महिमागान करते हुए पृथ्वी सूक्त में मनुष्यों को उपदेश देते हुए कहा गया है कि उद्योग करने वाले मनुष्य भूपति होकर इस वसुधा पृथ्वी पर सोना-चांदी आदि की प्राप्ति से बली और धनी होकर सुख पाते हैं। निरालसी और अप्रमादी होकर भूमि की रक्षा करने वाले इस पृथ्वी पर विज्ञानी और तेजस्वी होते हैं।
सृष्टि के आदि में जल के मध्य यह पृथ्वी बुदबुदे के समान थी, वह आकाश में ईश्वरनियम से दृढ़ होकर अनेक रत्नों की खान है। पूर्व के विचारवानों के समान मनुष्यों को पराक्रम से पृथ्वी की सेवा करके बड़े राज्य के भीतर तेजस्वी और बली होकर वृद्धि करना चाहिए। समदर्शी परोपकारी महात्माओं के समान दृढ़चित्त होकर परस्पर सेवा करते हुए पृथ्वी पर अन्न आदि के लाभ से बल वीर्य बढ़ाना चाहिए। जिस पृथ्वी को दिवा -रात्रि अपने गुणों से उपजाऊ बनाते हैं, जिस को सूर्य अपने आकर्षण, प्रकाश और वृष्टि आदि कर्म से स्थिर रखता है, और जिस पर यथार्थवक्ता, यथार्थकर्मा और यथार्थज्ञाता पुरुष विजय पाते हैं, उस पृथ्वी को उपयोगी बनाकर प्रत्येक मनुष्य सब का हित करे।
मनुष्य कला, यंत्र, यान, विमान आदि से दुर्गम्य स्थानों में निर्विघ्न पहुंचकर पृथ्वी को उपजाऊ बनावें। नीतिविद्या, भूगर्भविद्या, भूतलविद्या और मेघविद्या आदि में निपुण होकर पृथ्वी को उपकारी और सुखदायक बनावें। मनुष्यों को उचित है कि कर्मकुशल लोगों के समान अपना कर्त्तव्य पूरा करके संसार में दृढ़ कीर्ति स्थापित करें। धर्म से सत्कारपूर्वक पृथ्वी की रक्षा करने वाले लोग शत्रुओं को नाश कर सकते हैं। पृथ्वी पर उत्पन्न होकर उद्योग करने वाले लोग सब प्राणियों की रक्षा करके सूर्य की पुष्टिकारक किरणों से वृष्टि आदि द्वारा सदा आनन्द पाते हैं। वाणी की मधुरता अर्थात सत्य वचन आदि से सब प्राणियों से उपकार लेने वाले सुख पाते हैं। मनुष्य धर्म के साथ भूमि का शासन करके समस्त उत्तम गुणों और पदार्थों से सुख प्राप्त करें। पुरुषार्थी पुरुष अनेक प्रयत्नों के साथ पृथ्वी पर सब से मिलकर विद्या द्वारा सुवर्ण आदि धन प्राप्त करके तेजस्वी होते हैं। अथर्ववेद 3/21/ 1-2 के अनुसार ईश्वर नियम से पृथ्वी में का अग्निताप अन्न आदि पदार्थों और प्राणियों में प्रवेश करके उनमें बढ़ने तथा पुष्ट होने का सामर्थ्य देता है। वह अग्नि ताप भूमि में सूर्य से आता है, तथा आकाश के पदार्थों में प्रवेश करके उन्हें बलयुक्त करता है। उस अग्नि को मनुष्य आदि प्राणी भोजन आदि से शरीर में बढ़ा कर पुष्ट और बलवान होते हैं। तथा उसी अग्नि को हव्यद्रव्यों से प्रज्वलित करके मनुष्य वायु, जल और अन्न को शुद्ध निर्दोष करते हैं।
जैसे भूमि भीतर और बाहर सूर्यताप से बल पाकर अपने मार्ग पर बेरोक चलती रहती है, वैसे ही मनुष्य भीतरी और बाहरी बल बढ़ाकर सुमार्ग में बढ़ता चले। जिस प्रकार मनुष्य उत्तम पुरुषों से मिलकर श्रेष्ठ-श्रेष्ठ गुण प्राप्त करते और दूसरों को प्राप्त कराते हैं, उसी प्रकार हम उत्तम गुण प्राप्त करके अपना जीवन श्रेष्ठ बनावें। गन्धवती पृथ्वी का आश्रय लेकर अनेक प्रकार से सब प्राणी और सब लोक आकार धारण करके ठहरते हैं। मनुष्य उस पृथ्वी के तत्त्वज्ञान से सब कार्य सिद्ध करके ऐश्वर्यवान होवें। पृथ्वी का गंध अर्थात अंश प्रविष्ट होकर पदार्थों को पुष्ट करता और सूर्य के ताप द्वारा देश-देशान्तरों में पहुँचता है। उस पृथ्वी से तत्त्ववेत्ता लोग उपकार लेकर प्रसन्न होते हैं। पृथ्वी का आश्रय लेकर संसार के देहधारी मनुष्य आदि सब प्राणी और अन्तरिक्ष के तारागण आदि सब लोक स्थित हैं, वैसे ही मनुष्य सब प्रकार उपकारी और तेजस्वी होकर विघ्नों का नाश करें। अनेक बड़े-छोटे पदार्थ और अनेक रत्नों से पृथ्वी के हित के लिए मनुष्य अन्न, जल आदि पदार्थ खावें।
हमारे उपकार के लिए पृथ्वी पर उत्पन्न फल फूल पत्र आदिवाले वृक्ष की सावधानी हम सदा करते रहें। मनुष्य पृथ्वी पर सावधान और स्वस्थ रहकर सदा सब को सुख देवें। विज्ञानी लोग भूगर्भविद्या, भूतलविद्या आदि द्वारा भूमि को खोजकर अनेक प्रकार के उपकारी पदार्थ प्राप्त करके स्वस्थ पुष्ट होवें। जैसे निर्मल जल से शरीर शुद्ध करके मल का नाश करते हैं, वैसे ही मनुष्य अन्तःकरण का मल दूर करके पृथ्वी पर धार्मिक व्यवहार से आत्मा की शुद्धि करें। चलते-फिरते रहकर पुरुषार्थ करने वाले पृथ्वी पर सब दिशाओं में सुख भोगते हैं। मनुष्य सब दिशाओं में सावधान रहकर दुराचारियों के फन्दों से बचें। मनुष्य ऐसा प्रयत्न करें कि विद्यायत्नपूर्वक ईश्वर की अद्भुत रचनाओं से सदा उत्तम-उत्तम क्रियाएँ करते रहें, जैसे सूर्य प्रकाश आदि से उपकार करता है। वस्तुतः पृथ्वी सूक्त में अंकित धर्म और नीति के पालन से राजा -प्रजा, गृहस्थ और समस्त मनुष्यमात्र का कल्याण होता है। पृथ्वी पर सब ऋतुओं में उचित कर्म करके पूर्ण आयु भोगते हुए स्वस्थ, सबल और दीर्घायु जीवन प्राप्त करना चाहिए। विश्व पृथ्वी दिवस पर पृथ्वी के हित के लिए मनुष्य के द्वारा पृथ्वी आदि पाँच तत्त्वों से उपकार लेकर अन्न आदि प्राप्त करने के संकल्प लेने से ही इस दिवस की सार्थकता सिद्ध होने की कल्पना की जा सकती है।