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बिहार में नए अध्यक्ष से कांग्रेस की उम्मीदें जगी!

bihar new president

bihar new president : बिहार में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव है और कांग्रेस ने एक नए चेहरे को सामने लाने का साहस किया है। राजेश राम दलितों की उसी जाति से आते हैं जिससे जगजीवन राम थे। उत्तर प्रदेश में इन्हें जाटव कहते हैं।

बिहार में रविदास। इनकी आबादी करीब 6 प्रतिशत है बिहार में। यूपी में ज्यादा है। दूसरी बात बिहार में किसी पार्टी भाजपा, जेडीयू, राजद का नेतृत्व इस दलित समाज के पास नहीं है।

कांग्रेस के बिहार के नेता और जमीनी कार्यकर्ता यही बात कह रहे थे। उनका कहना था कि कोई एक खास जनाधार (वोट बैंक) कांग्रेस के पास होना चाहिए। (bihar new president)

कांग्रेस कभी कभी जनता और अपने कार्यकर्ताओं की सुनती भी है। बिहार में प्रदेश अध्यक्ष बदलने का फैसला देखकर तो यह लगा। वहां लंबे समय से प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह को हटाने की मांग चल रही थी।

उन्हें निष्क्रिय बताए जाने के साथ लालू प्रसाद यादव के हितों के लिए काम करने वाला, बीजेपी के अपने दोस्तों की मदद करने वाला बताया जा रहा था। कांग्रेस करीब 35 साल से बिहार में ऐसे ही चल रही है। (bihar new president)

उत्तर प्रदेश में भी यही हाल है। इन दोनों राज्यों में कितने अध्यक्ष बदले गए कितने इन्चार्ज यह किसी को याद नहीं होगा। प्रयोग पर प्रयोग। इस चक्कर में अपनी

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सबसे करिश्माई नेता जिसे मानते हैं उस प्रियंका गांधी को भी यूपी का इन्चार्ज बनाकर उन्हें भी वहां असफल करवा दिया गया। (bihar new president)

लेकिन अब लगता है उस बिहार से जहां से इन्दिरा गांधी ने कांग्रेस की वापसी करवाई थी 1978 में बेलछी जाकर वहां से राहुल और खरगे भी कांग्रेस की वापसी की शुरूआत कर रहे हैं। एक दलित को नया प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाकर।

राजेश राम का नाम सुनकर लोगों को जगजीवनराम की याद आ जाएगी। कांग्रेस के सबसे बड़े दलित नेता हुए जगजीवन राम। कांशीराम के आने के पहले तक वे कांग्रेस के ही नहीं देश के सबसे बड़े दलित नेता थे। (bihar new president)

उनकी बेटी मीरा कुमार को कांग्रेस ने आगे बढ़ाने की बहुत कोशिश की। लोकसभा अध्यक्ष बनाया। मगर वे कभी दलितों के साथ खुद को जोड़ नहीं पाईं। उनके बेटे अंशुल अविजीत को भी कांग्रेस ने प्रमोट किया।

दिल्ली में कई प्रेस कान्फ्रेंसे करवाईं। अभी लोकसभा में पटना साहिब से टिकट दिया। मगर सफल नहीं हुआ। कांग्रेस पुराने घोड़ों पर लंबे समय तक दांव लगाती रहती है। (bihar new president)

लेकिन इस बार बिहार में जो इस साल का आखिरी विधान सभा चुनाव है उसने एक नए चेहरे को सामने लाने का साहस किया है। राजेश राम दलितों की उसी जाति से आते हैं जिससे जगजीवन राम थे।

उत्तर प्रदेश में इन्हें जाटव कहते हैं। बिहार में रविदास। इनकी आबादी करीब 6 प्रतिशत है बिहार में। यूपी में ज्यादा है। दूसरी बात बिहार में किसी पार्टी भाजपा, जेडीयू, राजद का नेतृत्व इस दलित समाज के पास नहीं है। (bihar new president)

भूमिहार बिहार की सबसे समर्थ जाति

कांग्रेस के बिहार के नेता और जमीनी कार्यकर्ता यही बात कह रहे थे। उनका कहना था कि कोई एक खास जनाधार ( वोट बैंक) कांग्रेस के पास होना चाहिए। भाजपा के पास सवर्ण है। (bihar new president)

नीतीश कुमार के पास कुर्मी, आरजेडी के पास यादव है। मगर कांग्रेस के पास कोई एक समुदाय नहीं है। अभी अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह भूमिहार थे।

भूमिहार बिहार की सबसे समर्थ जाति है। यूपी के कुछ जिलों को छोड़ शेष भारत में चूकि भूमिहार होते नहीं हैं इसलिए यहां लोग समझ नहीं पाते कि भूमिहार कौन होते हैं।

संक्षेप में बिहार की अधिकांश कृषिभूमि इन्हीं के पास है। जो रणवीर सेना बनी थी इन्हीं की थी। सवर्णों में आते हैं। और खुद को ब्राह्मण कहते हैं। मगर राजपूतों की तरह जमींदार भी हैं। राजनीतिक रुप से अब अधिकांश बीजेपी के साथ हैं।

इसलिए कांग्रेस का कार्यकर्ता कहता था कि अखिलेश को बनाए रखने से कोई फायदा नहीं है। भूमिहार का कोई वोट कांग्रेस को नहीं मिलता है। (bihar new president)

यहां एक लास्ट बात बताकर कि भूमिहार बाकी सवर्णों में भी कितना वर्चस्व रखता है यह चेप्टर खतम करेंगे कि बिहार में कहा जाता है कि नदी नाले नहर सरकार का बाकी सब भूमिहार का!

और भूमिहार अब पूरी तरह भाजपा का दिखता है। इसलिए राजेश राम को बनाने से ज्यादा बिहार के हर समुदाय जाति में अखिलेश को हटाने की खुशी है। (bihar new president)

जम्मू कश्मीर में भी यही हाल था (bihar new president)

लेकिन मूल बात अभी भी यही है कि कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल वहां बीजेपी को कैसे रोकेंगे?  11 साल में हर जगह सफलता पाने के बाद अब बीजेपी की निगाहें उन राज्यों पर है जहां उसने आज तक जीत हासिल नहीं की है।

अपनी मुख्यमंत्री नहीं बनाया। केवल उप मुख्यमंत्री से संतोष करना पड़ा है। जम्मू कश्मीर में भी यही हाल था। भाजपा पहली बार अपना मुख्यमंत्री बनाने के लिए पूरी ताकत से लड़ी थी। लेकिन नेशनल कान्फ्रेंस ने रोक दिया।

बिहार में भी उसे केवल उप मुख्यमंत्री ही मिल रहा है। लेकिन इस बार वह यहां अपना मुख्यमंत्री बनाने के लिए वह कोई कसर उठा कर नहीं रखेगी। (bihar new president)

उसे रोकना विपक्ष की पहली जिम्मेदारी है। अगर यहां आ गई तो अगले साल बंगाल में चुनाव हैं जहां भी वह अभी तक सरकार नहीं बना पाई है वहां मुश्किल कर देगी।

बिहार में भी उसे रोकने का काम जम्मू कश्मीर की तरह क्षेत्रीय पार्टी आरजेडी ही कर सकती है। कांग्रेस की भूमिका सहयोगी ही रहेगी। उत्तर प्रदेश में भी समाजवादी पार्टी ने ही लोकसभा में बीजेपी को नंबर टू पर धकेला। (bihar new president)

80 में से 37 सीटें खुद लाई और 6 पर कांग्रेस को जिताया। बीजेपी 33 पर रह गई। यह याद दिलाना इस लिए जरूरी है कि नया अध्यक्ष बनने से कुछ कांग्रेसी अकेले लड़ने का मंसूबा बनाने लगे हैं। तर्क वहीं पुराना है कि कांग्रेस कब तक सहयोगियों को बढ़ाती रहेगी।

मोदी जी को ही फायदा पहुंचाएगी 

इसका जवाब एक ही है कि जब तक केन्द्र से मोदी को नहीं हटा देता विपक्ष तब तक उसमें से किसी को एक जगह तो किसी को दूसरी जगह समझौता करना पड़ेगा। केन्द्र से मोदी हट जाएं फिर विपक्ष अपनी अपनी ताकत बढ़ाने में लग सकता है।

मगर अभी ऐसी कोई भी कोशिश मोदी जी को ही फायदा पहुंचाएगी। दिल्ली में आम आदमी पार्टी को हराकर कांग्रेस ने बीजेपी की सरकार बनवा दी। अब इससे कांग्रेस दिल्ली में अपने आप मजबूत हो जाएगी यह चमत्कार देखने की प्रतीक्षा सब कर रहे हैं।

कांग्रेस संगठन का काम करती नहीं है। बोलते टाप नेता हैं। अध्यक्ष खरगे और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी दोनों। हरियाणा हारने के बाद क्या क्या नहीं बोले! पार्टी में गुटबाजी है। एक दूसरे को हराने में लगे रहे। संगठन (bihar new president)

कहीं नहीं है। जिला कांग्रेस कमेटिया नहीं हैं। नेता काम नहीं करते। दिल्ली पर निर्भर रहते हैं। और इन सबसे बढ़कर राहुल गांधी ने यह कहकर धमाका कर दिया कि कांग्रेस के नेताओं में आधे भाजपाई हैं।

तो इन्हें हटाएगा कौन?  राहुल ने यह बड़ी बात अहमदाबाद में अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कही थी। दो हफ्ते होने वाले हैं। और तीन हफ्ते बाद ही वहां कांग्रेस का सबसे बड़ा सम्मेलन पूर्ण अधिवेशन (प्लेनरी) होने वाला है। 8 और 9 अप्रैल को।

तो सबसे बड़ा सवाल यह है कि अहमदाबाद में होने वाले इस अधिवेशन की तैयारी कौन कर रहा है? गृह राज्य करता है। तो गुजरात जहां कहा कि भाजपाई हैं तो क्या वही तैयारी कर रहे हैं? (bihar new president)

कांग्रेस में भाजपाई भरे पड़े (bihar new president)

भाजपा के लोग तैयारी कर रहे हैं कांग्रेस के अधिवेशन की! और कहा जा रहा है कि गुजरात के कांग्रेसियों के लिए कहा। मगर यह सच पूरी कांग्रेस पर लागू होता है। देश भर की कांग्रेस में भाजपाई भरे पड़े हैं।

और जब यह स्थिति है तो दिल्ली से जो अधिवेशन की तैयारियां हो रही हैं तमाम प्रस्ताव बनाए जा रहे हैं। जो वहां पढ़े जाएंगे। जिन पर चर्चा होगी। कौन बोलेगा इसका फैसला किया जा रहा है। तो यह सब वही आधे भाजपाई कर रहे हैं। (bihar new president)

संगठन का पुर्नगठन कांग्रेस से हो नहीं रहा। उन्हीं पुराने लोगों की एक महीने से कम समय में खरगे और राहुल ने दो मीटिंगें कर लीं। सर्वोच्च पद वाले महासचिवों और राज्य इंन्चार्जों की। क्या यहीं रहेंगे?

प्लेनरी में नए पदाधिकारियों को ले जाना था। एक अलग ही माहौल होता है। जोश से भरकर आते हैं। मगर वही बरसों से जमे चेहरे। जिला कांग्रेस कमेटी के देश भर के अध्यक्षों की मीटिंग कर रहे हैं। (bihar new president)

यह भी प्लेनरी से पहले। मतलब जिला कांग्रेस कमेटी ( डीसीसी) जिसे सबसे महत्वपूर्ण बता रहे हैं और मजबूत करने की बात कर रहे हैं। उसके अध्यक्ष भी पुराने रहेंगे। प्रदेश अध्यक्ष भी। डिपार्टमेंटों का भी वही हाल है। सब बदलाव मांग रहे हैं। मगर कांग्रेस अपनी जड़ता से निकल नहीं पा रही।

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