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संविधान के 75 साल का क्या हासिल?

Constitution

भारत के Constitution का 75 साल का क्या वही हासिल है, जो लोकसभा में सत्तापक्ष और विपक्ष के सांसदों ने बताया है? अगर लोकसभा में हुई चर्चा और उस पर प्रधानमंत्री से लेकर रक्षा मंत्री और नेता विपक्ष के भाषणों को देखें तो पता चलता है कि भारत के ‘संविधान का लगातार शिकार किया गया है’। ‘एक परिवार के मुंह में इस शिकार का स्वाद लग गया तो उसने बार बार इसमें संशोधन किया’। अंगीकार किए जाने के बाद सारे समय ‘संविधान को हाईजैक करने का प्रयास किया गया’। देश में ‘इमरजेंसी लगाई गई’। समय समय पर ‘अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग करके चुनी हुई सरकारों को पलटा गया’।

Constitution की ताकत से ‘न्यायपालिका पर दबाव बनाया गया’। सत्ता से ‘धनबल हासिल करके उसके सहारे खरीद फरोख्त हुई’ और ‘जनादेश चुराया गया’। ‘केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग करके विपक्षी नेताओं को परेशान किया गया’। सत्ता के दम पर ‘ऐसी वाशिंग मशीन बनाई गई, जिसमें धुल कर आरोपी लोग पवित्र होने लगे’। ‘देश की सारी संपत्ति बेची गई’ और एक खास उद्योगपति के लिए सारी चीजें दांव पर लगा दी गईं। ‘कमजोर लोगों को दबाया गया’, उनको अधिकार नहीं मिले, ‘देश मनुस्मृति से चल रहा है’ आदि, आदि।

संविधान की 75 साल की यात्रा: उपलब्धियां और चुनौतियां

सोचें, क्या सचमुच Constitution लागू होने के बाद भारत ने यही सब हासिल किया है? इस तरह की बातें करना संविधान का अपमान नहीं है? क्या यह संविधान बनाने वाले भारत के महान स्वंतत्रता सेनानियों और विद्वानों के प्रति कृतघ्नता नहीं है? यह आजादी के बाद 75 साल तक देश के आम लोगों के मत से चुनी गई सरकारों और सरकार चलाने वाले नेताओं की योग्यता, क्षमता, नैतिकता, ईमानदारी और देशप्रेम पर सवाल नहीं है? क्या यह देश के करोड़ों लोगों की सामूहिक समझदारी पर प्रश्नचिन्ह नहीं है? यह दुर्भाग्य है कि दो दिन की बहस में किसी नेता ने संविधान की अच्छी बातों और उन पर अमल से देश को हासिल हुई उपलब्धियों के बारे में नहीं बताया। यह कहा गया कि ‘संविधान को डैमेज किया गया’।

सवाल है कि देश में क्या अभी डैमेज्ड संविधान है या किसी ने कुछ डैमेज किया तो किसी ने उसे ठीक किया और अब भी देश में संविधान उसी भावना से काम कर रहा है, जिस भावना से Constitution निर्माताओं ने उसे बनाया था? इसमें कोई संदेह नहीं है कि संविधान के कुछ प्रावधानों के दुरुपयोग के बावजूद आजादी के बाद की उपलब्धियों की सूची बहुत बड़ी है और ये सारी उपलब्धियां संविधान के प्रावधानों को लागू करने के ईमानदार प्रयास की वजह से हासिल हुई हैं। निश्चित रूप से इसमें कमियां हैं, लेकिन उन कमियों के नजरिए से संविधान और 75 साल की उसकी यात्रा को देखना Constitution के साथ अन्याय करना होगा।

संविधान संशोधन: 75 साल में बदलाव और उनकी सकारात्मकता

दुर्भाग्य से संसद में सबने सिर्फ कमियां देखीं। प्रधानमंत्री ने कहा कि एक परिवार ने 55 साल राज किया और बार बार संविधान का शिकार किया। उन्होंने कहा कि इस परिवार ने 75 बार संविधान बदला। सवाल है कि क्या हर बार संविधान का शिकार ही हुआ और कोई भी संशोधन ऐसा नहीं था, जिससे देश और इसके नागरिकों को फायदा हुआ? संविधान का पहला संशोधन 1951 में हुआ था। उसके जरिए सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जातियों व जनजातियों की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान जोड़े गए थे।

इसके अलावा जमींदारी उन्मूलन कानूनों की संवैधानिक वैधता को पूरी तरह से सुरक्षित करने और अभिव्यक्ति की आजादी पर उचित प्रतिबंध लगाने के प्रावधानों किए गए। साथ ही इसी संशोधन के जरिए नौवीं अनुसूची जोड़ी गई, जिसमें उन कानूनों को रखा जाता है, जो संविधान के बुनियादी ढांचे से जुड़े हैं और जिनकी न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती है। क्या इन बदलावों को संविधान का शिकार करना कहेंगे या इनसे एससी, एसटी समुदाय का आरक्षण और जमींदारी प्रथा समाप्त करने का लक्ष्य सुनिश्चित हुआ?

ऐसे ही सातवें संशोधन के जरिए भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन और केंद्र शासित प्रदेशों की स्थापना हुई। आठवें संशोधन के जरिए 1960 में लोकसभा व राज्यों की विधानसभाओं में एससी और एसटी वर्ग का आरक्षण 10 साल और बढ़ाया गया। 10वें संशोधन के जरिए दादर व नागर हवेली को भारत का केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया, जो हमें पुर्तगाल से मुक्ति के बाद हासिल हुआ था। 14वें संशोधन के जरिए पांडिचेरी के भारत में समावेश हुआ और त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश व गोवा विधानसभा का गठन हुआ।

संविधान में बदलाव: सकारात्मक सुधार और विवादास्पद संशोधन

15वें संशोधन के द्वारा हाई कोर्ट के जजों के रिटायर होने की उम्र सीमा 60 से बढ़ा कर 62 साल की गई। 21वें संशोधन के जरिए सिंधी भाषा को आधिकारिक भाषा बनाया गया। 52वें संशोधन के जरिए दलबदल विरोधी कानून आया। 65वें संशोधन के जरिए एससी, एसटी के लिए राष्ट्रीय आयोग का गठन हुआ। 73वें और 74वें संशोधन के जरिए त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था और शहरी निकायों के वैधानिक प्रावधान किए गए। क्या इन संशोधनों को Constitution का शिकार करना कह सकते हैं?

इसमें कोई संदेह नहीं है कि इंदिरा गांधी की सरकार ने संविधान में 24वें संशोधन के जरिए संसद को यह शक्ति दी कि वह मौलिक अधिकार कम कर सके या 42वें संशोधन के जरिए संविधान के बुनियादी ढांचे को बदलने का प्रयास किया। लेकिन इस आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि भारत का संविधान इतना बेचारा और कमजोर रहा कि हर बार उसका शिकार किया गया। इंदिरा गांधी 1971 से 1977 के बीच कई अच्छे बदलाव भी किए लेकिन उनके द्वारा संविधान की मूल भावना से किया गया छेड़छाड़ लोगों को पसंद नहीं आया और लोगों ने 1977 में उनको बदल दिया। देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी और उसके बाद फिर किसी ने Constitution के साथ उस तरह की छेड़छाड़ की हिम्मत नहीं की, जैसी इंदिरा गांधी ने की थी।

संविधान की भूमिका: चुनौतियों के बावजूद भारत की एकता और प्रगति

इंदिरा गांधी ने जो किया वह अपवाद है। उसे नियम नहीं माना जा सकता है। फिर भी इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई तो उसके बाद इमरजेंसी के प्रावधानों को संविधान से हटा नहीं दिया गया। आज भी संविधान में इमरजेंसी के प्रावधान जस के तस हैं। इसका मतलब है कि इमरजेंसी संविधान सम्मत थी परंतु उस अवधि में जो ज्यादती हुई वह गलत थी। अगर इमरजेंसी का प्रावधान गलत होता तो 44वें संशोधन के जरिए जब इंदिरा गांधी के सारे फैसले बदले गए तो उसे भी हटा दिया जाता।

बहरहाल, यह कहना कि कांग्रेस के शासन में जितने संशोधन हुए सब संविधान का शिकार करने वाले थे और बाकी सरकारों ने जो संशोधन किए वो सारे बहुत जनहितकारी थे, ऐसा नहीं है। इसी तरह यह कहना कि मौजूदा सरकार जो कुछ कर रही है वह संविधान विरोधी है और संविधान की रक्षा का पुनीत कर्तव्य सिर्फ विपक्ष निभा रहा है तो वह भी अतिशयोक्ति है। कुछ कमियां सबके काम में रही हैं। लेकिन वह संविधान की गलती नहीं थी, बल्कि उन लोगों की गलती थी, जिनको संविधान के हिसाब से काम करना था।

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बहरहाल, कई कमियों के बावजूद यह देश संविधान से ही चल रहा है, मनुस्मृति से नहीं, जैसा कि राहुल गांधी बार बार कह रहे हैं। आजादी के बाद के मुश्किल समय में संविधान ने ही रास्ता दिखाया। सांप्रदायिक दंगों, भौगोलिक विभाजन और आर्थिक बदहाली के साथ मिली आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री से लेकर अभी तक के प्रधानमंत्री अधिकतर समय संविधान की मशाल लेकर ही चले हैं। उन्होंने संविधान के बताए रास्ते को ही फॉलो किया है। तभी इतनी विविधता के बावजूद भारत एकता के सूत्र में बंधा रहा। लोकतांत्रिक बना रहा और औसत से बेहतर गति से आर्थिक विकास करता रहा। पिछले 75 साल में ढेरों सामाजिक कुरीतियों को दूर किया गया। समाज को आधुनिक और प्रगतिशील बनाने के प्रयास हुए।

75 साल की इस यात्रा में कुछ नेताओं ने व्यक्तिगत फायदे के लिए संविधान के प्रावधानों का दुरुपयोग किया या उसकी शक्तियों का गलत इस्तेमाल किया तब भी संविधान की चर्चा उस पर सीमित नहीं रहनी चाहिए। संविधान की व्यापकता, उसके बड़े आयाम और उससे हासिल उपलब्धियों की चर्चा होनी चाहिए थी। यह ध्यान रखना चाहिए कि कोई भी संविधान उतना ही अच्छा होता है, जितना अच्छा उसका इस्तेमाल करने वाले होते हैं।

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