भारत में समय का पहिया उलटा घूमने लगा है। समाज और जीवन से जुड़े हर क्षेत्र में भारत के कदम पीछे की तरफ मुड़ गए हैं। एक तरफ बड़ी आर्थिक तरक्की की योजनाएं बन रही हैं। विकास के हवामहल खड़े किए जा रहे हैं। विकसित भारत के सपने दिखाए जा रहे हैं। तकनीक की उपलब्धियों का परचम लहराया जा रहा है और दूसरी ओर पीछे इतिहास में लौटने की होड़ भी शुरू हो गई है। दुखद और निराशाजनक यह है कि अतीत के गौरव को वापस प्राप्त करने की बातों के साथ साथ इतिहास की गलतियां या कमियां खोज कर वर्तमान में उस आधार पर न्याय करने की बातें सांस्थायिक रूप से हो रही हैं। प्रशासन और राजनीति में शीर्ष पर बैठे लोग इसको प्रोत्साहन दे रहे हैं। क्षुद्र राजनीतिक लाभ के लिए इतिहास की ग्रंथियों को उभारा जा रहा है। इतना ही नहीं विकास की चर्चा के बीच उसकी संभावनाओं को कमतर करने वाले काम भी सांस्थायिक तरीके से हो रहे हैं।
भारत में कभी विविधता में एकता की चर्चा होती थी। विविधता का उत्सव मनाया जाता था। सभी धर्मों के लोग एक साथ मिल कर त्योहार मनाते थे। लेकिन अब एक दूसरे को त्योहारों के समय घरों में बंद रहने की नसीहत दी जा रही है। उधर मणिपुर में कबीलों की लड़ाई छिड़ी है, जो पूरी दुनिया में मध्यकाल में हुई थी। भारत में अब अलग अलग कबीले के लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं और सड़कों पर हिंसा का तांडव हो रहा है। भारत दुनिया का पहला देश है, जिसने जनसंख्या नीति बनाई और परिवार नियोजन को घर घर पहुंचाया। इसके बावजूद जब भारत दुनिया की सबसे बड़ी आबादी का देश बन गया तो आबादी बढ़ाने को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। तीन सदी पहले इतिहास में दफन हो चुके किसी व्यक्ति को कब्र से निकाल कर सजा देने की बात हो रही है। यह सब धार्मिक महानता और विश्व गुरू बनने के मुलम्मे में लपेट कर राजनीतिक फायदे के लिए किया जा रहा है।
पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के संभल के एक पुलिस अधिकारी का वीडियो वायरल हुआ, जो मुस्लिम समाज के लोगों से कह रहा था कि अगर उनको रंग से परहेज है तो होली के दिन जुमे की नमाज पढ़ने नहीं निकलें। असल में इस साल होली और रमजान के महीने का दूसरा जुमा एक ही दिन है। जुमे की नमाज वैसे भी मुसलमानों के लिए बहुत अहम होती है। उसमें भी रमजान के पाक महीने में उसका महत्व और ज्यादा होता है। लेकिन पुलिस अधिकारी ने कहा कि मुस्लिम समाज के लोग होली के दिन बाहर नहीं निकलें और निकलें तो तैयार होकर निकलें कि उन पर रंग पड़ सकता है।
हैरानी की बात यह है कि बाद में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस बात का न सिर्फ बचाव किया, बल्कि इसे दोहराया भी। उन्होंने कहा कि जुमा तो हर हफ्ते आता है और जुमे की नमाज टाली भी जा सकती है। ऐसा नहीं है कि देश में कोई धर्मयुद्ध चल रहा है, जिसमें ऐसा कहना या करना जरूरी है। यह बात विशुद्ध रूप से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराने और राजनीतिक लाभ लेने के लिए कही गई है। दुर्भाग्य से कहीं से यह संवेदनशील आवाज नहीं आई कि एक दूसरे की परंपराओं और मान्यताओं का ख्याल रखते हुए अपना अपना त्योहार मनाएं। कहीं से इसका प्रयास होता नहीं दिख रहा है कि दोनों समुदाय के लोगों की एक साझा बैठक हो और उसमें इसका रास्ता निकाला जाए कि कैसे जुमे की नमाज भी शांति से संपन्न हो और रंगों का त्योहार होली भी धूमधाम से मनाई जाए।
उधर महाराष्ट्र में सारे जरूरी मुद्दे छोड़ कर औरंगजेब पर राजनीति हो रही है। जैसे कुछ समय पहले कर्नाटक में टीपू सुल्तान पर हो रही थी वैसे अब महाराष्ट्र में औरंगजेब पर हो रही है। औरंगजेब की तारीफ करने पर समाजवादी पार्टी के विधायक पर मुकदमा दर्ज हुआ है और उनकी सदस्यता हमेशा के लिए खत्म करने की मांग हो रही है। इस विवाद के बीच अब मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने कहा है कि औरंगजेब की कब्र को संभाजीनगर के खुल्दाबाद से हटाया जाना चाहिए। उन्होंने तीन सौ साल पहले दफन औरंगजेब की कब्र हटाने का नया विवाद छेड़ते हुए अफसोस भी जताया कि यह संभव नहीं हो पा रहा है क्योंकि कांग्रेस की सरकार के समय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई ने उसे संरक्षित घोषित कर दिया है। सोचें, अगर मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद कुछ उन्मादी लोग औरंगजेब की कब्र हटाने पहुंच जाएं तो क्या उससे सांप्रदायिक तनाव नहीं बढ़ेगा!
लोगों का दिमाग कैसे इसी दिशा में काम कर रहा है, इसकी एक मिसाल हाल में छत्रपति संभाजी के जीवन पर बनी फिल्म ‘छावा’ के बाद के घटनाक्रम में मिलती है। फिल्म में दिखाया गया है कि औरंगजेब की मुगल सेना ने मराठाओं का खजाना लूट कर उसे मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में असीरगढ़ के किले में दबाया था। फिल्म देखने के बाद सैकड़ों लोग आधी रात को फावड़ा, कुदाल और मेटल डिटेक्टर लेकर खजाना खोजने असीरगढ़ के किले पर पहुंच गए। लोग सोने के सिक्के मिलने का दावा भी कर रहे हैं। इस तरह के सच्चे झूठे दावे ‘छावा’ फिल्म में संभाजी महाराज पर औरंगजेब द्वारा की गई कथित ज्यादतियों को सही ठहराएंगे और समाज पर उसका क्या असर होगा यह सोचा जा सकता है।
पूर्वोत्तर के मणिपुर में पिछले करीब दो साल से जातीय हिंसा चल रही है। सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं और हजारों लोग अपने घरों से विस्थापित हुए हैं। कुकी और मैती दो समुदायों में ऐसा अविश्वास और ऐसी गहरी खाई बनी है कि दोनों समुदायों के लोग एक दूसरे को पहचान कर उनकी हत्या कर रहे हैं। एक दूसरे के रिहायशी इलाकों पर बम बरसा रहे हैं और गोलियां चला रहे हैं। भारत में कभी भी धर्म या जाति की पहचान के आधार पर वैसा युद्ध नहीं हुआ, जैसा पुनर्जागरण से पहले यूरोप में या अमेरिका में हुआ। अब जबकि समाज आधुनिक और लोकतांत्रिक हो गया तो राजनीतिक लाभ हानि के लिए इस तरह की जातीय हिंसा हो रही है। पिछले दो साल से इस हिंसा को रोकने और दोनों समुदायों के बीच भरोसा बनाने का कोई ठोस प्रयास नहीं हुआ है।
भारत को विश्व गुरू बनाने के अभियान में पहली सफलता जनसंख्या के मोर्चे पर मिली है। भारत दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन गया है। भारत दुनिया का पहला देश है, जिसने जनसंख्या नीति बनाई थी और परिवार नियोजन को घर घर पहुंचाया था। उसका असर अब दिखने लगा था। लंबे प्रयास और अभियान के बाद भारत में जनसंख्या वृद्धि दर धीमी हुई है और राष्ट्रीय औसत रिप्लेसमेंट रेट के बराबर पहुंच गया है। इसी बीच एक तरफ हिंदुओं की आबादी कम होने और भविष्य में कभी अल्पसंख्यक हो जाने के खतरे का प्रचार शुरू हुआ और दूसरी ओर दक्षिण भारत के राज्यों में परिसीमन से राजनीतिक प्रतिनिधित्व कम होने का भय दिखाया गया। दोनों समूहों ने जनसंख्या बढ़ाने की अपील शुरू कर दी। धार्मिक हस्तियों के साथ साथ अब राज्यों के मंत्री, सांसद, विधायक आदि खुलेआम आबादी बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन की योजना का ऐलान कर रहे हैं। आंध्र प्रदेश में टीडीपी के एक सांसद ने तीसरे बच्चे के जन्म पर बेटा होने पर एक गाय और बेटी होने पर 50 हजार रुपए देने की घोषणा की है। ऐसा लग रहा है जैसे कुएं में ही भांग पड़ गई है। एक तरफ दुनिया टाइम और स्पेस से परे जाने की दिशा में बढ़ रही है तो भारत में चारों तरफ इतिहास, भूगोल की लड़ाइयां छिड़ी हैं।