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लोकगीत से सरकार का डरना!

नेहा को नोटिस इस बात का प्रमाण है कि सरकारी नैरेटिव से अलग कोई बात समाज में जाए, यह सरकार को मंजूर नहीं है। ऐसी हर बात से उसे अपना नैरेटिव भंग होने का डर सताने लगता है।

अगर एक नवयुवती के लोकगीत किसी सरकार को डराने लगे, तो यही समझा जाएगा कि सत्ता की तमाम धमक के अंदर कुछ ऐसी बातें हैं, जिससे सत्ताधारी को सचमुच भय लगता है। वरना, उत्तर प्रदेश सरकार नेहा सिंह राठौर को अपने भोजपुरी गीतों के जरिए समाज में वैमस्य फैलाने का आरोप लगाते हुए नोटिस नहीं थमाती। नेहा सिंह राठौर नौजवान हैं, इसलिए उन्हें बेरोजगारी जैसी समस्याएं नजर आती हैँ। चूंकि वे बेखौफ हैं, इसलिए अपने गीतों के जरिए उन समस्याओं से परेशान लोगों की पीड़ा को स्वर देती हैं। ढाई साल पहले वे बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान चर्चा में आई थीं, जब उनका गीत ‘बिहार में का बा’ (बिहार में क्या है) वायरल हो गया था। उसके बाद उन्होंने यूपी चुनाव के समय यूपी में का बा और गुजरात चुनाव के समय गुजरात में का बा गीत भी बनाए। बीच-बीच में जो मसले आते हैं, उन पर दो-तीन मिनट के गीत वे बनाती हैँ। अभी कानपुर में जब अतिक्रमण हटाने के दौरान चले बुल्डोजर से दो महिलाओं की मौत हो गई, तो उस पर भी उन्हें गीत बनाया। एक मिनट नौ सेकेंड के इस गीत में उन्होंने सरकार की बुल्डोजर नीति को कठघरे में खड़ा किया।

गीत सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुआ। यही उत्तर प्रदेश सरकार को चुभ गई है। तो नेहा सिंह राठौर को भेजे नोटिस में कानपुर देहात पुलिस ने सात सवाल भेजे हैं। पुलिस का दावा है कि नेहा के गीत से समाज का माहौल बिगड़ रहा है। नोटिस में पूछे गए सवालों में यह भी है कि क्या वीडियो में नेहा खुद हैं, गीत उन्होंने लिखा है या किसी और ने और गीत से उत्पन्न भावार्थ से समाज पर पड़ने वाले प्रभाव से आप अवगत हैं अथवा नहीं? उस गीत से समाज पर क्या असर पड़ा, यह तो कहना मुश्किल है, लेकिन उससे प्रशासन पर बहुत गहरा असर हुआ है, यह साफ है। यह नोटिस इस बात का प्रमाण है कि मौजूदा समय में सरकारी नैरेटिव से अलग कोई भी बात समाज में जाए, यह सरकार को मंजूर नहीं है। जाहिर है, ऐसी हर बात से सरकार को अपने नैरेटिव में छेद होने का डर पैदा हो जाता है।

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