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रोइए जार जार क्या, कीजिए हाय हाय क्यों

सन् 2022 की बड़ी बात। देश के 81 करोड़ लोग इस बात से संतुष्ट और खुश हैं कि उनको पांच किलो अनाज मुफ्त में मिल रहा है और आगे भी मिलता रहेगा। उन्हेंअपनी ऐसे जीने से शिकायत नहीं है। वे पांच किलो अनाज को सरकार बहादुर की कृपा मानते हैं और अपनी गरीबी को ईश्वर का न्याय। फिर क्यों इस पर हाय, हाय करना। उनकी दुर्दशा पर आंसू बहाने का क्या मतलब है? ऐसे ही आजादी से पहले भी देश के बड़े हिस्से में पानी का संकट था। और महिलाएं घड़ा लेकर मीलों पानी के लिए चलती थीं। आज भी चल रही हैं। जो समर्थहैं वे अपने घरों में आरओ मशीन लगा कर साफ पानी पी रहे हैं। बाकी जनता प्रदूषित पानी से काम चला रही है। आजादी के 75 साल बाद देश के नागरिकों को पीने का साफ पानी नहीं मिला लेकिन किसको इसकी शिकायत है!

देश के एक बड़े हिस्से में आजादी के समय भी बाढ़ आती थी, लोग विस्थापित होते थे, फसल तबाह होती थी और आज भी हो जाती है। लेकिन क्या किसी को शिकायत है? हर साल बाढ़ रोकने के नाम पर हजारों करोड़ रुपए खर्च होते हैं और उसके बाद सैकड़ों करोड़ आपदा प्रबंधन पर खर्च होते हैं। जो प्रबंधन करता है उसकी कमाई बढ़ती है और जो पीड़ित होता है वह बाढ़ को ईश्वरीय  प्रकोप मान कर संतोष करता है। कभी इसकी शिकायत करते हुए कोई नहीं दिखा।

भारत कभी सांस्कृतिक परंपराओं, सभ्यतागत श्रेष्ठताओं, परिवार व समाज की संस्थाओं की वजह से दुनिया में एक सॉफ्ट पावर के तौर पर स्थापित था। लेकिन आज कौन सी ऐसी परंपरा है, जिसकी श्रेष्ठता दुनिया के आगे पेश की जाए? धर्म का कौन सा मर्म आज भारत दुनिया के सामने पेश कर सकता है? दुनिया के तीन बड़े धर्मों- हिंदू, सिख और बौद्ध का जन्म भारत में हुआ लेकिन क्या आज इसी धरती पर जन्मे इन तीनों धर्मों के बीच बिना शर्त सद्भाव है! आंदोलन करने वाले सिख किसान क्या खालिस्तानी नही कहे गए थे और क्या बौद्ध धर्म की बात करने वाले को दिल्ली सरकार से इस्तीफा नहीं देना पड़ा था?

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