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दुनिया में बढ़ती दूरियां

अध्ययनकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि यूक्रेन युद्ध विश्व इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। इसके बाद अब ‘पश्चिम के प्रभाव से मुक्त दुनिया’ का उदय हो सकता है।

यूक्रेन युद्ध का एक साल पूरा होने के मौके पर अमेरिका के अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक इन्फोग्राफिक्स प्रकाशित किया, जिसकी हेडिंग थी- पश्चिम ने रूस को अलग-थलग करना चाहा, लेकिन नाकाम रहा। दुनिया के हर देश ने यूक्रेन युद्ध पर क्या रुख लिया, इसका विवरण इसमें दिया गया। यह बताया गया कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में भले लगभग 140 देशों ने रूसी कार्रवाई की निंदा की हो, लेकिन प्रतिबंध लगाने का सवाल आया, तो उसमें अमेरिका, यूरोप और अमेरिकी धुरी में शामिल देशों के अलावा किसी और ने साथ नहीं दिया। इसी मौके पर यूरोपियन यूनियन (ईयू) की फंडिंग से चलने वाले एक थिंक टैंक ने अपनी अध्ययन रिपोर्ट जारी की। उसमें कहा गया कि यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद एक साल में जहां पश्चिमी देश अधिक मजबूती से एकजुट हुए हैं, वहीं बाकी दुनिया से उनकी दूरी बढ़ गई है। यूरोपियन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन्स (ईसीएफआर) ने अपने अध्ययन के दौरान ईयू के सदस्य नौ देशों के साथ-साथ अमेरिका, ब्रिटेन, भारत, चीन, रूस और तुर्किये में लोगों के बीच सर्वे किया।

इससे सामने आया कि युद्ध, लोकतंत्र और विश्व शक्ति-संतुलन के मुद्दों पर एक तरफ अमेरिका और ईयू और दूसरी तरफ बाकी दुनिया के लोगों की आम राय में काफी फासला बन गया है। सर्वे में शामिल अध्ययनकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि यूक्रेन युद्ध विश्व इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। इसके बाद अब ‘पश्चिम के प्रभाव से मुक्त दुनिया’ का उदय हो सकता है। रिपोर्ट के लेखकों ने मीडिया को बताया कि यूक्रेन युद्ध से एक विरोधाभास सामने आया है। पश्चिमी जगत अब अधिक एकजुट है, लेकिन दुनिया में उसका प्रभाव इस समय जितना कम हुआ है, वैसा पहले कभी नहीं था। अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक दुनिया में अब ज्यादातर लोग यह मानते हैं कि दुनिया दो ध्रुवों में बंट रही है। पश्चिमी देशों से बाहर के लोग अब चीजों को अलग ढंग से देख रहे हैँ। ऐसे में पश्चिम को अब चीन और रूस जैसे तानाशाही व्यवस्था वाले विरोधी देशों के साथ जीना सीखना होगा। साथ ही उन्हें भारत और तुर्किये जैसे स्वतंत्र रुख वाले देशों के साथभी जीना सीखना पड़ेगा।

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