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जलवायु परिवर्तन की मार

एक और खबर यह है कि जलवायु परिवर्तन और इंसानी गतिविधियों की वजह से अफ्रीकी महाद्वीप की पश्चिमी समुद्र तटरेखा पर भारी संकट खड़ा हो गया है। तटीय इलाकों को समुद्र अपनी चपेट में लेता जा रहा है। इससे लोगों की रोजी-रोटी खतरे में पड़ गई है।

जलवायु परिवर्तन का असर अब दुनिया पर इतनी तेजी से दिखने लगा है कि ऐसी आपदाएं अब आम खबर जैसी हो गई हैं। असामान्य मौसम तो अब दुनिया भर का अनुभव हो गया है। यूरोप में ठंड के मौसम में इस बार तापमान जितना ऊंचा रहा, वह आश्चर्यजनक ही था। उधर भारत के मैदानी इलाकों में तापमान इतना नीचे गया, जितना पहले शायद कभी ही होता था। अब एक और खबर यह है कि जलवायु परिवर्तन और इंसानी गतिविधियों की वजह से अफ्रीकी महाद्वीप की पश्चिमी समुद्र तटरेखा पर भारी संकट खड़ा हो गया है। तटीय इलाकों को समुद्र अपनी चपेट में लेता जा रहा है। इससे लोगों की रोजी-रोटी खतरे में पड़ गई है। कैमरून, इक्वाटोरियल गिनी, नाईजीरिया, टोगो और बेनिन समेत घाना की सीमा से लगी गिनी की खाड़ी मछली उद्योग के अलावा समुद्री व्यापार का बड़ा मार्ग है। लेकिन अब इस खाड़ी के किनारे बसे देशों में समुद्र का पानी इंसानी बसेरों को निगलने लगा है। कई लोगों के घर समुद्र में समा चुके हैं।

लगातार आने वाले समुद्री ज्वार ने घाना के फुवेमे जैसे समुदायों पर कहर बरपाया है। घर, स्कूल और सामुदायिक केंद्र, सब बह गए हैं और सैकड़ों लोग विस्थापित हो गए हैं। घाना की तट रेखा 500 किलोमीटर से ज्यादा लंबी है। देश की करीब एक चौथाई आबादी समुद्र के किनारे रहती है। यूनेस्को के एक अध्ययन के मुताबिक घाना के पूर्वी तट की करीब 40 प्रतिशत जमीन 2005 से 2017 के बीच कटाव और बाढ़ की भेंट चढ़ चुकी है। घाना के तटीय क्षेत्र वोल्टा में फुवेमे, कीटा और ऐसे ही 15 बसावटें कभी फलते-फूलते मछुआरों के गांव हुआ करती थीं। अब वहां खेती की जमीन पर समुद्र का पानी कब्जा होता जा रहा है। वैसे जानकारों के मुताबिक तटीय कटाव की वजह सिर्फ जलवायु परिवर्तन नहीं है। वजह मानवीय गतिविधियां भी हैं। इलाके में भूजल का अत्यधिक दोहन, रेत का खनन, मैंग्रोव जंगलों की कटाई आदि जैसी गतिविधियां शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन और इन सब गतिविधियों ने मिल कर स्थानीय आबादी के लिए अत्यंत गहरा संकट खड़ा कर दिया है।

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