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यूरोप का असमंजस

चीन का सख्त रुख सामने आने के बाद यूरोप के स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा है कि यात्रा पर पूरी तरह रोक लगाए जाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि चीन में जो कोविड वैरिएंट सामने आ रहे हैं, वे यूरोप में पहले से ही मौजूद हैं।

चीन को दंडित करने का जब कभी मौका सामने आए, यूरोप में उत्साह दौड़ उठता है। लेकिन जब उसके आर्थिक परिणामों पर ध्यान जाता है, तो यूरोपीय देशों का उत्साह चूकने लगता है। इस महाद्वीप की यह पुरानी कहानी हो चुकी है, जो फिर चीन में बढ़े कोरोना संक्रमण के मामले में दोहराई जा रही है। चीन के कोरोना संकट का मुकाबला करने के लिए यूरोपीय संघ के देश चीन से यात्राओं पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहे हैं। बताया गया है कि यूरोपीय संघ के अंदर चीन से आनेवाले यात्रियों की कोविड जांच पर सहमति बन रही है। यूरोपीय आयोग के प्रवक्ता टिम मैकफी ने कहा है कि बहुमत देश इस पक्ष में हैं कि यात्रा से पहले चीन में यात्रियों का कोरोना टेस्ट हो। लेकिन चीन ने ऐसे प्रतिबंधों को मानने से इंकार कर दिया है और जवाबी कदमों की चेतावनी दे डाली है। चीन का सख्त रुख सामने आने के बाद यूरोप के स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा है कि यात्रा पर पूरी तरह रोक लगाए जाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि चीन में जो कोविड वैरिएंट सामने आ रहे हैं, वे यूरोप में पहले से ही मौजूद हैं।

इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन ने भी यात्राओं पर प्रतिबंधों का विरोध किया है। संगठन में विश्व की 300 एयरलाइंस शामिल हैं। एसोसिएशन ने कहा है कि ओमिक्रॉन के सामने आने के समय किए गए रिसर्च दिखाते हैं कि यात्राओं पर प्रतिबंधों का मामलों के पीक पर असर नहीं हुआ। जर्मनी ने चीन में कोरोना वायरस के प्रसार के खिलाफ यूरोपीय संघ के साझा कदमों की मांग की है। इसके तहत चीन से आने वाले विमानों पर मौजूद पानी की जांच एक मुद्दा है। जर्मनी के फ्रैंकफर्ट एयरपोर्ट पर पहले से ही पानी के परीक्षण की व्यवस्था है। इससे पता चल सकेगा कि क्या किसी खास विमान से आया यात्री संक्रमित था। ऐसी जांच करना हर देश का अधिकार है और कर्त्तव्य भी। लेकिन मसला यह है कि आज की बंटती दुनिया में हर मुद्दा भू-राजनीति से जुड़ जाता है। वैसा ही एक बार फिर होता दिख रहा है।

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