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शारदीय नवरात्र में राजस्थान के अनोखे माता रानी के मंदिरों के करें दर्शन

Shardiya Naratri 2024Image Source: bhasker

Shardiya Naratri 2024: शक्ति की उपासना का पवित्र पर्व शारदीय नवरात्र चल रहा है. राजस्थान सहित देशभर में मां दुर्गा की पूजा की जा रही है. माता रानी के मंदिरों को बड़े ही भव्य तरीके से सजाया गया है. इन 9 दिनों में माता रानी के 9 अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है. नवरात्र का पर्व नवमी को और दशहरे को समाप्त होता है. शारदीय नवरात्र 3 अक्टूबर से शुरू होकर 11 अक्टूबर को समाप्त होंगे. राजस्थान में माता रानी के कई अनोखे और चमत्कारी मंदिर है जहां भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है. जयपुर में आमेर स्थित शिला माता, बांसवाड़ा में मां त्रिपुरा सुंदरी, जैसलमेर में तनोटराय माता, सीकर में जीण माता, जोधपुर में चामुंडा माता मंदिरों में विशेष आयोजन हो रहे हैं. आइए नवरात्र के अवसर पर जानते है राजस्थान के चमत्कारी मंदिर के बारें में….

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राजस्थान के इन मंदिरों की खासियत…

1. सिरोही: जावाल में देसी की शिवशक्ति प्रतिमा

सिरोही के जावाल में 10 दिन गरबा उत्सव चलेगा। इसके लिए गुजरात के कलाकारों ने 4 दिन में 201 किलो देसी घी से शिवशक्ति की प्रतिमा का निर्माण किया है। यह प्रतिमा दस दिन तक एसी पांडाल में रहेगी। जावाल के श्री चामुंडा गरबा मंडल की ओर से यह प्रतिमा बनवाई गई है। (Shardiya Naratri 2024) 

2. जैसलमेर: तनोट माता मंदिर

देश का हर सैनिक तनोट माता की कृपा और चमत्कार से भली भांति वाकिफ है। माता की कृपा तो सदियों से भक्तों पर है, लेकिन 1965 की भारत और पाकिस्तान की जंग में माता ने अपने चमत्कार दिखाए। माता के मंदिर पर पाकिस्तानियों ने सैकड़ों बम गिराए लेकिन यह बम फटे नहीं। यह मंदिर जैसलमेर से करीब 130 किलो मीटर दूर भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर स्थित है। माता के इस चमत्कारिक मंदिर का निर्माण लगभग 1200 साल पहले हुआ था।

1965 की लड़ाई के बाद माता की प्रसिद्ध मंदिर विदेशों में भी छा गई। पाकिस्तानियों के मंदिर परिसर में गिरे 450 बम फटे ही नहीं। ये बम अब मंदिर परिसर में बने एक संग्रहालय में भक्तों के दर्शन के लिए रखे हुए हैं। 1965 की जंग के बाद इस मंदिर का जिम्मा सीमा सुरक्षा बल को दे दिया गया। इसके बाद से आज तक हर दिन भारतीय सेना के जवान ही मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं।

3. जयपुर: शिला माता मंदिर

राजस्थान का आमेर किला विश्व विरासत की सूची में शामिल है। आमेर की संरक्षक मानी जाने वाली देवी शिला माता मंदिर के लिए देश भर में प्रसिद्ध है। हिंदू देवी काली को समर्पित यह शिला देवी मंदिर आमेर किले के परिसर में ही स्थित है। कहा जाता है कि राजा मान सिंह काली माता के बहुत बड़े भक्‍त थे। वह इस मूर्ति को बंगाल से लेकर आए थे। पूरे मंदिर के निर्माण में सफेद संगमरमर का उपयोग किया गया है। इसे देखने के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं।

आमेर में प्रतिष्ठापित शिला देवी की प्रतिमा के टेढ़ी गर्दन को लेकर भी एक किवदंती प्रचलित है। कहा जाता है की माता राजा मानसिंह से वार्तालाप करती थी। यहां देवी को नर बलि दी जाती थी, लेकिन एक बार राजा मानसिंह ने माता से वार्तालाप के दौरान नरबलि की जगह पशु बलि देने की बात कही। इससे माता रुष्ट हो गईं। गुस्से से उन्होंने अपनी गर्दन मानसिंह की ओर से दूसरी ओर मोड़ ली। तभी से इस प्रतिमा की गर्दन टेढ़ी है। माता के गर्दन के ऊपर पंचलोकपाल बना हुआ है, जिसमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश और कार्तिके के छोटी-छोटी प्रतिमा बनी हुई है।

4. सीकर : जीण माता मंदिर

सीकर जिले के गोरिया गांव के दक्षिण मे पहाड़ों पर जीण माता का मंदिर है। जीण माता का वास्तविक नाम जयंती माता है। घने जंगल से घिरा हुआ मंदिर तीन छोटे पहाड़ों के संगम पर स्थित है। इस मंदिर में संगमरमर का विशाल शिव लिंग और नंदी प्रतिमा मुख्य आकर्षण है। इस मंदिर के बारे में कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है। फिर भी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता का मंदिर 1000 साल पुराना माना जाता है। जबकि कई इतिहासकार आठवीं सदी में जीण माता मंदिर का निर्माण काल मानते हैं।

लोक मान्यता के अनुसार, एक बार मुगल बादशाह औरंगजेब ने राजस्थान के सीकर में स्थित जीण माता और भैरों के मंदिर को तोड़ने के लिए अपने सैनिकों को भेजा। जीण माता ने अपना चमत्कार दिखाया और वहां पर मधुमक्खियों के एक झुंड ने मुगल सेना पर धावा बोल दिया था। मधुमक्खियों के काटे जाने से बेहाल पूरी सेना घोड़े और मैदान छोड़कर भाग खड़ी हुई। माना जाता है कि उस वक्त बादशाह की हालत बहुत गंभीर हो गई। तब बादशाह ने अपनी गलती मानकर माता को अखंड ज्योति जलाने का वचन दिया, हालांकि इसकी कोई पुष्टि नहीं करता।

5. बीकानेर : करणी माता मंदिर, देशनोक

बीकानेर के देशनोक में स्थित करणी माता का मंदिर दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इस मंदिर में भक्तों से ज्यादा काले चूहे नजर आते हैं। वैसे यहां चूहों को ‘काबा’ कहा जाता है और इन काबाओं को बाकायदा दूध, लड्डू और अन्य खाने-पीने की चीजें परोसी जाती हैं। माना जाता है कि इस मंदिर में दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की हर मुराद पूरी होती है। (Shardiya Naratri 2024) 

करणी माता के मंदिर को ‘चूहों वाली माता’ या ‘चूहों वाला मंदिर’ भी कहा जाता है। मंदिर में आने वाले भक्तों को चूहों का जूठा किया हुआ प्रसाद ही मिलता है। हैरान करने वाली बात यह है कि इतने चूहे होने के बाद भी मंदिर में बिल्कुल भी बदबू नहीं है। साथ ही यहां इनसे आज तक कोई भी बीमारी नहीं फैली। चूहों का जूठा प्रसाद खाने से कोई भी भक्त बीमार नहीं हुआ।

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By NI Desk

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