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16 अगस्त को सावन की दूसरी एकादशी, किस्मत चमकाना चाहते है तो करें यह कार्य

Sawan Ekadashi Fast

Sawan Ekadashi Fast: महादेव के सावन का पवित्र महीना चल रहा है. इस महीने में कई महत्वपूर्ण व्रत और त्योंहार आते है. इस महीने में भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन किया जाता है. श्रावण माह में भगवान विष्णु की अराधना और पूजन का भी एक विशेष पर्व आता है. सावन माह की दूसरी एकादशी आ रही है. श्रावण माह की दूसरी एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है. पुत्रदा एकादशी वैसे तो साल में 2 बार आती है.

पुत्रदा एकादशी के नाम से पता चल रहा है कि यह व्रत संतान सुख के लिए किया जाता है. पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ व्रत रखने से संतान सुख मिलता है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार पहली पुत्रदा एकादशी श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में आती है, जो 16 अगस्त शुक्रवार को है. वहीं, दूसरी पुत्रदा एकादशी पौष माह के शुक्ल पक्ष में आती है. सावन महीने में इस व्रत का अत्यंत महत्व बताया गया है.

संतान सुख की कामना रखने वाले लोगों को पुत्रदा एकादशी का व्रत जरूर रखना चाहिए. मान्यता है इस व्रत को करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा से संतान की प्राप्ति होती है. साथ ही भगवान विष्णु का आशीर्वाद भी बना रहता है.

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इस तरह से करें पुत्रदा एकादशी का व्रत

1. दशमी तिथि से ही एकादशी व्रत के नियमों पर चलने की मान्यता है.
2. व्रत से एक दिन पूर्व ही सात्विक भोजन करें.
3. एकादशी पर सुबह जल्दी उठकर स्नान कर घर के मंदिर में दीपक जलाएं और व्रत का संकल्प लें.
4. पूजा में धूप, दीप, फूल-माला, अक्षत, रोली और नैवेद्य समेत 16 सामग्रियां भगवान को अर्पित करें.
5. भगवान विष्णु को पूजा में तुलसी दल जरूर अर्पित करें
6. इसके बिना उनकी हर पूजा अधूरी मानी जाती है.
7. इसके बाद पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा पढ़ें और आरती करें.

इस दिन दीपदान का विशेष महत्व

एकादशी पर भगवान विष्णु का स्मरण करके किसी पवित्र नदी, सरोवर में अन्यथा तुलसी या पीपल के वृक्ष के नीचे दीपदान का भी महत्व है. दीपदान करने के लिए आटे के छोटे-छोटे दीपक बनाकर उसमें थोड़ा सा तेल या घी डालकर पतली सी रुई की बत्ती जलाकर उसे पीपल या बढ़ के पत्ते पर रखकर नदी में प्रवाहित किया जाता है. साथ ही जरूरतमंदों को सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए।

पुत्रदा एकादशी कथा का सार

प्राचीनकाल में सुकेतुमान नामक एक राजा के यहां कोई संतान नहीं थी. वह महल, वैभव सब कुछ होने के बाद भी संतान न होने के दुख से चिंतित रहता था. कुछ समय बाद वह अपनी समस्या के निवारण के लिए भटकते हुए मुनियों के आश्रम में पहुंचा जहां उसे इस एकादशी के महत्व के बारे में ऋषियों ने बताया. जब राजा ने यह व्रत किया तो उन्हें संतान सुख की प्राप्ति हुई.

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