हिंदू धर्म में मृत्यु को अंत नहीं, बल्कि एक नई यात्रा की शुरुआत माना जाता है। जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो गरुड़ पुराण के अनुसार उसकी आत्मा शरीर को त्याग देती है।
वह शरीर, जिसे मनुष्य जीवन भर सहेजता है, सजाता है और अपने अस्तित्व का अभिन्न हिस्सा मानता है, मृत्यु के पश्चात मात्र एक निर्जीव काया रह जाता है।
इस शरीर को उसके परिजन शुद्ध विधि-विधान से अंतिम संस्कार के लिए शमशान घाट ले जाते हैं, जहाँ उसका दाह संस्कार किया जाता है। यह प्रक्रिया आत्मा को उसके भौतिक बंधनों से मुक्त करने की दिशा में पहला कदम होती है।
गरुड़ पुराण, जो हिंदू धर्म का एक प्रमुख ग्रंथ है, के अनुसार जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो यमराज के दूत – जिन्हें यमदूत कहा जाता है – उसकी आत्मा को लेने आते हैं। अगर उस व्यक्ति ने अपने जीवन में सत्कर्म किए हों, तो यमदूत उसे सम्मानपूर्वक और शांति से यमलोक की यात्रा पर ले जाते हैं।
लेकिन यदि उसके कर्म पापकर्म से भरे हों, तो यमदूत अत्यंत भयानक और डरावने रूप में प्रकट होते हैं। वे आत्मा को जबरदस्ती घसीटते हैं, मारते-पीटते हुए अपने साथ ले जाते हैं। यह दृश्य अत्यंत भयावह होता है, और आत्मा को गहन पीड़ा सहनी पड़ती है।
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गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के तुरंत बाद, यमदूत आत्मा को 24 घंटे के लिए अपने साथ रखते हैं और फिर उसे पृथ्वी पर उसके परिवार के पास लौटा देते हैं। इस अवधि के बाद आत्मा एक प्रेत रूप में अपने घर-परिवार के आस-पास विचरण करती है।
यह आत्मा 13 दिनों तक पृथ्वी पर रहती है और अपने परिजनों की गतिविधियों को देखती है, महसूस करती है। इस अवधि में परिजन विभिन्न धार्मिक कर्मकांड जैसे श्राद्ध, हवन, पिंडदान और पूजा-पाठ करते हैं, ताकि आत्मा को अगले लोक की यात्रा में सहायता मिल सके और वह शांति प्राप्त कर सके।
पिंडदान विशेष रूप से एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया मानी जाती है, जिसके माध्यम से जीवित परिजन मृत आत्मा को अन्न और जल प्रदान करते हैं – यह आत्मिक पोषण आत्मा को अगली यात्रा के लिए शक्ति देता है। साथ ही, यह उसकी गति को सुनिश्चित करता है, जिससे आत्मा ब्रह्मलोक, पितृलोक या पुनर्जन्म की ओर बढ़ सके।
गरुड़ पुराण में आत्मा को अमर और अनंत माना गया है। शरीर की मृत्यु के बाद भी उसका अस्तित्व समाप्त नहीं होता। वह अपने कर्मों के अनुसार अपने गंतव्य की ओर अग्रसर होती है – यही धर्म, कर्म और मोक्ष का शाश्वत चक्र है, जिसे समझना और स्वीकार करना हर मानव का कर्तव्य है।
गरुड़ पुराण में पिंडदान के बाद की यात्रा
जब किसी प्राणी का इस धरती पर जीवन समाप्त होता है, तो उसका शरीर पंचतत्व में विलीन हो जाता है, लेकिन आत्मा की यात्रा वहीं समाप्त नहीं होती।
गरुड़ पुराण में वह यात्रा तो तब शुरू होती है, जब शरीर त्यागने के पश्चात आत्मा को यमलोक की ओर अग्रसर होना पड़ता है। यह यात्रा अत्यंत कठिन, रहस्यमयी और गूढ़ होती है।
हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, विशेषकर गरुण पुराण में यह विस्तार से वर्णित है कि मृत्यु के उपरांत आत्मा को यमलोक तक पहुंचने के लिए एक लंबा और कष्टप्रद मार्ग तय करना होता है। पिंडदान की प्रक्रिया के बाद आत्मा यमदूतों द्वारा उस मार्ग पर ले जाई जाती है, जिसे ‘प्रेत यात्रा’ कहा जाता है।
यह यात्रा 17 से 49 दिनों तक चलती है, और इस दौरान आत्मा को 16 भीषण और भयावह नदियों को पार करना पड़ता है। ये नदियाँ प्रतीक हैं उन कठिन अनुभवों का, जो आत्मा को अपने कर्मों के परिणामस्वरूप भुगतनी पड़ती हैं।
यदि आत्मा पुण्यात्मा हो, जिसने जीवन में धर्म, दया और सेवा का पालन किया हो, तो उसकी यह यात्रा अपेक्षाकृत सरल होती है। किंतु यदि आत्मा पापों में लिप्त रही हो,(गरुड़ पुराण) अहंकार, क्रूरता और अन्याय से भरा जीवन जिया हो, तो यह मार्ग कांटों से भरा हो जाता है। उसे हर मोड़ पर पीड़ा, भय और पश्चाताप से गुजरना पड़ता है।
परिजनों का कर्तव्य और शक्ति का स्रोत
यह वह समय होता है जब मृत आत्मा के परिजनों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। यदि वे नियमपूर्वक श्राद्ध, तर्पण, हवन, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन आदि करते हैं, तो उससे आत्मा को अदृश्य रूप से शक्ति प्राप्त होती है।
धर्म, दान और मंत्रोच्चार आत्मा को सहारा देते हैं, उसे उस कठिन मार्ग पर चलने की ऊर्जा और साहस प्रदान करते हैं। यही कारण है कि हिंदू धर्म में गरुड़ पुराण में पितृ पक्ष, श्राद्ध और कर्मकांडों को अत्यधिक महत्व दिया गया है।
इन सभी कठिनाइयों और परीक्षाओं को पार करने के पश्चात आत्मा अंततः यमराज के दरबार में पहुंचती है। वहां उसका स्वागत नहीं, बल्कि न्याय होता है। (गरुड़ पुराण) यमराज के सहायक चित्रगुप्त, आत्मा के पूरे जीवन का लेखा-जोखा प्रस्तुत करते हैं। प्रत्येक पुण्य और पाप, प्रत्येक विचार और कर्म का गिनती के साथ विवरण दिया जाता है।
यमराज, जो धर्म के अधिपति हैं, निष्पक्ष निर्णय लेते हैं। यदि आत्मा का पुण्य पाप से अधिक हो, तो वह स्वर्ग को प्राप्त होती है — एक ऐसा स्थान जहां उसे सुख, शांति और दिव्यता प्राप्त होती है। परंतु यदि पाप भारी पड़े, तो आत्मा को नरक की ओर भेजा जाता है, जहां उसे अपने कर्मों के अनुसार दंड भोगना पड़ता है।
इस प्रकार मृत्यु के बाद की आत्मा की यात्रा न केवल हमारे कर्मों का सच्चा मूल्यांकन है, बल्कि यह हमें जीवन के महत्व को समझाने वाली एक महान चेतावनी भी है। (गरुड़ पुराण) यह हमें प्रेरित करती है कि हम इस जीवन को विवेक, करुणा और धर्म के साथ जीएं, ताकि आत्मा की वह अंतिम यात्रा सरल, शांतिपूर्ण और दिव्य हो सके।
स्वर्ग का सुख और नरक की पीड़ा
हिंदू धर्मशास्त्रों गरुड़ पुराण में आत्मा को अमर और अविनाशी माना गया है। यह शरीर तो नश्वर है, लेकिन आत्मा सदा जीवित रहती है। जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो उसकी (गरुड़ पुराण) आत्मा शरीर को त्याग देती है और अपने कर्मों के अनुसार अगले पड़ाव की ओर बढ़ती है। यही आत्मा की यात्रा स्वर्ग, नरक और पुनर्जन्म के चक्र में प्रवेश करती है।
अगर किसी आत्मा ने अपने जीवन में अच्छे कर्म किए होते हैं—जैसे सत्य बोलना, दूसरों की सेवा करना, धर्म का पालन करना, और बिना किसी स्वार्थ के परोपकार करना—तो उसे मृत्यु के बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
स्वर्ग को आनंद और सुख का स्थान माना गया है, जहां दिव्य वातावरण, सुंदर गंध, अमृत तुल्य भोजन, और इंद्र की सभा जैसे सभी सुख-साधन आत्मा को मिलते हैं। वहां आत्मा को कोई पीड़ा नहीं होती, केवल शांति, आनंद और संतोष का अनुभव होता है।
इसके विपरीत, यदि आत्मा ने पाप किए होते हैं—जैसे झूठ बोलना, चोरी करना, हिंसा करना, किसी को धोखा देना या धार्मिक मार्ग से भटक जाना—तो उसे नरक भेजा जाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार, ऐसे 36 प्रकार के नरकों का वर्णन किया गया है। हर नरक एक विशेष प्रकार के पाप के लिए है….जैसे-
तामिस्र – जहां धोखेबाजों को रखा जाता है।
रौरव – हिंसक और निर्दयी लोगों के लिए।
काकोल – जो दूसरों को दुःख देते हैं।
अन्धतमिस्र – जहां अज्ञान और लोभ से ग्रसित आत्माओं को दंड मिलता है।
नरक में आत्मा को बहुत ही कठोर और असहनीय सजाएं दी जाती हैं, ताकि वह अपने पापों का प्रायश्चित कर सके। यह दंड आत्मा को उसके कर्मों का वास्तविक बोध कराता है।
पुनर्जन्म का चक्र
जब आत्मा अपने कर्मों का फल—चाहे वह स्वर्ग में सुख हो या नरक में दुःख—पूरा भोग लेती है, तो उसे पुनः धरती पर जन्म लेना पड़ता है। यही प्रक्रिया पुनर्जन्म कहलाती है। लेकिन नया जन्म कैसे होगा, यह पूरी तरह आत्मा के पूर्व जन्मों के कर्मों पर निर्भर करता है।
यदि अच्छे कर्म किए गए थे, तो अगला जन्म मनुष्य रूप में हो सकता है, वह भी एक बेहतर परिस्थिति में—एक अच्छे परिवार में, विद्या और बुद्धि के साथ। लेकिन अगर बुरे कर्म प्रबल रहे, तो आत्मा को किसी निम्न योनि में भी जन्म लेना पड़ सकता है, जैसे पशु, पक्षी, कीट या अन्य जीवन रूपों में।
स्वर्ग और नरक कोई काल्पनिक स्थान नहीं हैं, बल्कि हमारे कर्मों का प्रतीकात्मक और आध्यात्मिक परिणाम हैं। हर सोच, हर कार्य और हर भावना का असर हमारे अगले जीवन पर पड़ता है। (गरुड़ पुराण) यही कारण है कि धर्मशास्त्रों में सदाचरण, भक्ति, सेवा और सच्चाई को सबसे ऊपर स्थान दिया गया है।
यह विवरण केवल भय उत्पन्न करने के लिए नहीं है, बल्कि आत्मा को जागरूक करने के लिए है कि वह अपने जीवन को सही दिशा में ले जाए, ताकि मोक्ष की ओर अग्रसर हो सके।
कर्म ही जीवन का सत्य है, और वही गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद भी आत्मा का मार्गदर्शक बनता है