Economy crisis, नरेंद्र मोदी के राज में मध्यवर्ग की संख्या और शेयर बाजार की तेजी का मामला पहेली जैसा है। एक संस्था (The People Research on India’s Consumer Economy- PRICE) ने मध्यवर्ग की ऐसी परिभाषा दी है कि वह मध्यवर्ग समझ ही नहीं आएगा। प्रतिमाह नौ हजार रुपए का वेतनभोगी भी मध्य वर्ग में तो 54 हजार रुपए प्रतिमाह की कमाई वाला भी मध्यवर्ग में! सोचें, नौ हजार बनाम 54 हजार रुपए प्रतिमाह के फर्क पर।
ऐसे ही 17 डॉलर से 100 डॉलर (1428 रुपए बनाम 84 सौ) प्रतिदिन की कमाई के लोगों के मध्यवर्ग की परिभाषा है। कोई तुक ही नहीं इस तरह की परिभाषा से भारत के 43 करोड़ लोगों के मध्यवर्ग होने का! मगर इस तरह की तुकबंदियों में इन दिनों आंकड़ों की जो फसल है तो स्वाभाविक है जो शेयर बाजार के निवेशकों की संख्या का आंकड़ा भी पौने नौ करोड़ लोगों का है।
दूसरी तरफ मौजूदा त्योहारी सीजन की ये खबरें हैं, जिनसे साफ जाहिर है कि कथित मध्य वर्ग सिकुड़ता हुआ है। दशहरा-दीपावली में लोगों की खाने पीने की चीजों में खरीदारी पैंदे पर थी। तभी नेस्ले कंपनी के प्रबंधकों के मुंह से बात निकली कि मध्यवर्ग सिकुड़ा है। महंगाई ने लोगों की खरीदारी को घटाया है। ऑटो क्षेत्र में बिक्री घटी तो एफएमसीजी की उपभोक्ता खरीदारी में भी गिरावट है। और जिनकी खरीदारी बढ़ी है वह अमीर वर्ग है, जिसमें अति महंगे लक्जरी सामानों की रिकॉर्ड तोड़ खरीद है।
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यह वही ट्रेंड है जो भारत की कुल आर्थिकी में असमानता बढ़ने के ट्रेंड से जाहिर है। 140 करोड़ लोगों की भीड़ में अमीरों के और अमीर होने की रियलिटी हर तरह के खर्च, हर तरह की गतिविधि से साफ जाहिर है। जैसे गुरूग्राम के लक्जरी 50-100 करोड़ रुपए के फ्लैट हाथों-हाथों बुक हो रहे हैं वहीं पुराने इलाकों, छोटे-मध्य शहरों में खरीदारों की कमी की बातें हैं।
एक और अजीब बात। अंतरराष्ट्रीय हालातों से जो महंगाई (सोना-चांदी) और तेजी है उसका सीधे भारत पर असर है और उसमें भारत गंवाता हुआ है। विदेशी संस्थागत निवेशकों की खूब चांदी है। निश्चित ही ऐसा शेयर बाजार के देशी 43 करोड़ लोगों के निवेश की कीमत पर होगा। इस अक्टूबर से विदेशी निवेशकों के भारत से भागने का यदि रिकॉर्ड है तो अनुमान लगा सकते हैं कि वे कितना कमा कर जा रहे होंगे? भारत के घरेलू निवेशक ही पीट रहे होंगे। मध्यवर्ग जब फेस्टिवल सीजन में सिकुड़ा है तो शेयर बाजार में क्या करता हुआ होगा?
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सो, बाजार और शेयर बाजार दोनों में भारत का मध्यवर्ग जर्जर दशा में है। सरकारी अफसरों और भ्रष्टाचार के गलियारों में कमाने वालों को छोड़ें तो पैसा या तो सरकारी फिजलूखर्ची में जाया होता हुआ है या ब्लैक होता हुआ है। ताजा (चीन, डोनाल्ड ट्रंप तथा अडानी ग्रुप) सुर्खियों ने और वे हालात बनाए हैं, जिनसे विदेशी संस्थागत निवेशकों को शेयर बाजार से लगातार भागना ही है। इनका भागना मतलब देशी निवेशकों पर मंदी की मार।
वैसे जानकारों को मालूम करना चाहिए कि पिछले दस वर्षों में विदेशी एफआईआई ने भारत में कितना मुनाफा कमाया और उनके खेले में भारत के कथित करोड़ों निवेशकों की जेबें कितनी खाली हुईं? कितने ठगे गए? जाहिर है विकास के अमृतकाल में 140 करोड़ लोगों की बचत और उनकी हैसियत जैसी सिकुड़ी है, गिरी है वह भारत के आर्थिक इतिहास का एक अलग ही अध्याय है!