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कांग्रेस को घर ठीक करना है

CWC meeting

CWC meeting

CWC meeting: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कर्नाटक के बेलगावी में कांग्रेस कार्य समिति की विशेष बैठक में कहा कि 2025 का साल कांग्रेस संगठन में बदलाव और मजबूती का होगा।

तभी माना जा रहा है कि इस साल कांग्रेस संगठन में कुछ बड़ी फेरबदल होगी।

वैसे भी कांग्रेस ने कई राज्यों में प्रदेश कमेटियों को भंग कर दिया है, कई जगह प्रदेश कमेटियां भंग होनी हैं क्योंकि राज्यों में कांग्रेस का चुनावी प्रदर्शन बहुत खराब रहा है

कई राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष तो बना दिए गए लेकिन उनकी बनाई कमेटियों को मंजूरी नहीं दी गई क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष और प्रभारियों की सूची अलग अलग थी।

सो, कांग्रेस को राज्यों में तो बदलाव करना है। लेकिन उससे पहले केंद्रीय संगठन में बदलाव करना होगा। उससे भी ज्यादा अहम यह है कि कांग्रेस के नंबर एक परिवार को अपना घर ठीक करना है।

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गौरतलब है कि मल्लिकार्जुन खड़गे अक्टूबर 2022 में जब कांग्रेस अध्यक्ष बने थे तब उन्होंने कई महीने के इंतजार के बाद अपनी कमेटी बनाई थी, जिसमें प्रियंका गांधी वाड्रा को महासचिव बनाया था।

लेकिन वे बिना किसी प्रभार के महासचिव थीं। ऐसा लग रहा है कि उनको महासचिव सिर्फ इसलिए बनाया गया था ताकि उनको कांग्रेस कार्य समिति का सदस्य बनाया जा सके।

वे पहले उत्तर प्रदेश की प्रभारी थीं लेकिन उनकी जगह अविनाश पांडे को वहां का प्रभारी बना दिया गया।

लगभग दो साल से प्रियंका गांधी वाड्रा बिना किसी प्रभार या बिना किसी जिम्मेदारी के कांग्रेस महासचिव हैं। तभी सवाल है कि क्या मल्लिकार्जुन खड़गे नए साल में प्रियंका को संगठन में कोई जिम्मेदारी देंगे?

यह लाख टके का सवाल है और बहुत अहम इसलिए है क्योंकि प्रियंका गांधी वाड्रा को बिना किसी जिम्मेदारी के महासचिव इसलिए बनाया गया था ताकि वे कांग्रेस कार्य समिति में शामिल हो सकें लेकिन बेलगावी में 26 और 27 अक्टूबर को कांग्रेस कार्य समिति की विशेष बैठक रखी गई तो प्रियंका उसमें नहीं गईं।

सोचें, यह कितना बड़ा मौका था!

सोचें, यह कितना बड़ा मौका था! महात्मा गांधी एक ही बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे और उन्होंने 1924 में बेलगांव कांग्रेस की अध्यक्षता की थी।

उस मौके के एक सौ साल पूरे होने पर कांग्रेस ने कार्य समिति की विशेष बैठक रखी थी लेकिन प्रियंका उसमें नहीं गईं। कहा गया कि उनकी सेहत ठीक नहीं थी।

हालांकि बाद में फिर कहा गया कि सोनिया गांधी सेहत की वजह से बेलगावी नहीं जा रही थीं इसलिए उनकी देखभाल के लिए प्रियंका दिल्ली में रूक गईं।

यह बहुत लचर तर्क है। सोनिया की देखभाल के लिए सारी व्यवस्था है और हर समय प्रियंका उनकी देखभाल नहीं करती हैं।

सांसद बनने के बाद प्रियंका की स्वतंत्र राजनीति शुरू हुई लग रही है। वे सांसद बनने के बाद पहले ही हफ्ते में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलीं।

ध्यान नहीं आ रहा है कि पिछले 10 साल में राहुल गांधी कभी अपने चुनाव क्षेत्र की  कोई समस्या लेकर प्रधानमंत्री या केंद्रीय गृह मंत्री से मिलने गए हों।

लेकिन प्रियंका ने अमित शाह से मुलाकात की और वायनाड में आई प्राकृतिक आपदा के लिए मदद की मांग की।

पहला मामला घर में फैसले का(CWC meeting)

राहुल गांधी और पूरी कांग्रेस अडानी के खिलाफ जब आंदोलन कर रही थी तो प्रियंका शामिल हुईं थी  लेकिन वे किसी दिन फिलस्तीन के समर्थन का तो किसी दिन बांग्लादेश के हिंदुओं के समर्थन वाला झोला लेकर संसद पहुंचीं।

जाहिर है पहला मामला घर में फैसले का है। सोनिया गांधी इस साल 79 साल को होंगी। वे सक्रिय राजनीति से एक तरह से दूर हो गई हैं।

हालांकि वे कांग्रेस संसदीय दल की नेता हैं लेकिन वहां भी उनका प्रतीकात्मक नेतृत्व ही है। फैसले सारे राहुल गांधी और उनकी टीम करती है।

सो, सोनिया और राहुल गांधी को तय करना है कि प्रियंका की भूमिका क्या होगी? राहुल लोकसभा में सदन के नेता यानी नेता प्रतिपक्ष हैं और अभी कांग्रेस की कोई योजना खड़गे को हटाने की नहीं है। तभी संगठन में राहुल के लिए कोई औपचारिक पद नहीं है।

प्रियंका गांधी को जिम्मेदारी मिल सकती है

इसलिए प्रियंका गांधी को संगठन में जिम्मेदारी मिल सकती है। वे महासचिव हैं और महासचिव के नाते उनको एक से ज्यादा प्रदेशों का प्रभारी बनाया जा सकता है।

लेकिन उससे ज्यादा इस बात की मांग होती है कि उनको संगठन महासचिव बनाया जाए। संगठन महासचिव के नाते केसी वेणुगोपाल बहुत कारगर नहीं हैं।

यह भी कहा जाता है कि प्रियंका को अहमद पटेल वाली जिम्मेदारी दी जाए यानी उनको कांग्रेस अध्यक्ष का राजनीतिक सलाहकार बनाया जाए।

कांग्रेस पार्टी को अगर सचमुच अपने संगठन को मजबूत बनाना है तो प्रियंका की भूमिका तय करनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि राहुल व प्रियंका के दो सत्ता केंद्र होने की अफवाहें न फैलें, क्योंकि इससे कांग्रेस को नुकसान होता है।

सब मानते हैं कि राहुल के मुकाबले प्रियंका को एप्रोच करना आसान है और प्रियंका से राजनीतिक संवाद भी सहज है। अगर उनमें यह क्वालिटी है तो कांग्रेस को इसका फायदा उठाना चाहिए।

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