ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक दूरसंचार, मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक आदि से संबंधित उत्पादन में चीन से आयातित पाट-पुर्जों का हिस्सा बढ़ता चला जा रहा है। अब यह 30 फीसदी हो गया है, जबकि 15 साल पहले यह 21 प्रतिशत ही था।
टेस्ला कंपनी के मालिक इलॉन मस्क ने भारत आने का कार्यक्रम बनाया और फिर अचानक उसे रद्द कर दिया। उसके बाद अचानक ही वे चीन चले गए। बीजिंग जाकर उन्होंने चीन के प्रधानमंत्री ली चियांग से मुलाकात की। चर्चा है कि उन्होंने स्वचालित इलेक्ट्रिक कारों को चीन में लॉन्च करने पर बातचीत की। संभवतः इसकी टेक्नोलॉजी भी चीन से साझा करने को वे तैयार हुए हैँ।
यह उस दौर में हुआ है, जब अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश चीन से अपने कारोबारी रिश्तों में “जोखिम घटाने” की नीति चल रहे हैं। जब कहा जा रहा है कि पश्चिमी कंपनियां अपने कारोबार “दोस्त” देशों में ले जा रही हैं। इन देशों में भारत की खूब चर्चा है। कम-से-कम भारतीय जनमत के एक बड़े हिस्से में खुशफहमी है कि पश्चिमी कंपनियां उसी तरह अब भारत को आर्थिक महाशक्ति बना देंगी, जैसा उन्होंने 1990 और 2000 के दशकों में चीन को बनाया था। मगर दिक्कत यह है कि जमीनी रुझान इन धारणाओं की पुष्टि नहीं करते। क्यों?
इस प्रश्न पर गंभीर विचार-विमर्श की जरूरत है। हकीकत यह है कि आत्म-निर्भर भारत और इलेक्ट्रॉनिक जैसी चीजों के निर्यात में भारत के कथित उदय की कहानी भी आखिर में चीन से जाकर जुड़ जाती है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक दूरसंचार, मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक आदि से संबंधित उत्पादन में चीन से आयातित पाट-पुर्जों का हिस्सा बढ़ता चला जा रहा है। अब यह 30 फीसदी हो गया है, जबकि 15 साल पहले यह 21 प्रतिशत ही था।
परिणाम है कि जहां चीन को भारत से होने वाला निर्यात 2019 से पिछले वर्ष तक लगभग 16 बिलियन डॉलर के आसपास ही रहा, जबकि उसी दौरान चीन से आयात 70 से बढ़कर 101 बिलियन डॉलर पहुंच गया। कारण यह है कि चीन ने शुरुआत जड़ मजबूत करने से की थी। उसने औद्योगिक उत्पादन का पूरी सप्लाई चेन अपने यहां विकसित किया है। जबकि भारतीय उद्योग उसके सप्लाई चेन पर निर्भर हैँ। ऊपर से आयात-निर्यात की नीतियों में अस्थिरता है। ऐसे में मस्क ने नई दिल्ली पर बीजिंग को तरजीह दी, तो इसमें कोई हैरत की बात नहीं है।