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गायब हो गई चमक

एक देश एक चुनाव

one nation one election committee

सम्मेलन उस समय हुआ, जब फिलस्तीन में इजराइल के नरसंहार के पक्ष में खड़ा होकर अमेरिका ने अपने सॉफ्ट पॉवर को लहू-लुहान कर रखा है। दूसरी तरफ इस वर्ष ट्रंप के फिर से राष्ट्रपति चुन लिए जाने की संभावना प्रबल होती जा रही है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद बड़े धूम-धाम से समिट ऑफ डेमोक्रेसीज- यानी लोकतांत्रिक देशों के सम्मेलन का आयोजन किया था। सबसे पहले इस सम्मेलन का विचार उन्होंने 2020 में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान रखा था। तब अमेरिकी जनमत के एक बड़े हिस्से में आशंका पैदा हुई थी कि तत्कालीन राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के तौर-तरीकों से वहां लोकतंत्र खतरे में है। उसी समय दुनिया के कई अन्य ‘लोकतांत्रिक’ देशों में भी धुर दक्षिणपंथी दलों एवं नेताओं का उदय हुआ था।

इसलिए समझ यह बनी थी कि लोकतंत्र के लिए दुनिया भर में चुनौतियां बढ़ रही हैँ। तब बाइडेन ने वादा किया कि राष्ट्रपति बनने के बाद वे दुनिया भर की ‘लोकतांत्रिक’ शक्तियों को इकट्ठा करेंगे, ताकि इस व्यवस्था में फिर से जान फूंकी जा सके। लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने अपनी सोच बदल ली। तब उन्होंने ‘लोकतांत्रिक’ देशों के शासकों का सम्मेलन आयोजित करने का फैसला किया। यानी ‘लोकतांत्रिक’ देशों में लोकतंत्र के पुनर्जीवन के बजाय वे ‘अधिनायकवादी’ देशों के विरुद्ध ‘लोकतांत्रिक’ देशों की गोलबंदी में जुट गए।

जाहिर है, विश्व जनमत ने इस आयोजन को चीन और रूस के खिलाफ अमेरिकी लामबंदी के एक औजार के रूप में देखा। पहले आयोजन की मेजबानी अमेरिका ने की। दूसरे सम्मेलन की मेजबानी में उसने अपने कुछ सहयोगी देशों को भी शामिल किया। लेकिन बुधवार को समाप्त हुए तीसरे सम्मेलन की मेजबानी अकेले दक्षिण कोरिया ने की। इसमें अमेरिका की नुमाइंदगी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई देशों के नेताओं ने ऑनलाइन माध्यम से इसे संबोधित किया।

लेकिन इसकी धमक गायब रही। इसके कारणों को समझा जा सकता है। सम्मेलन उस समय हुआ, जब फिलस्तीन में इजराइल के नरसंहार के पक्ष में खड़ा होकर अमेरिका ने अपने सॉफ्ट पॉवर को लहू-लुहान कर रखा है। दूसरी तरफ इस वर्ष ट्रंप के फिर से राष्ट्रपति चुन लिए जाने की संभावना प्रबल होती जा रही है। स्पष्टतः लोकतंत्र के नाम पर दुनिया को दिखाने के लिए बाइडेन के पास कोई थाती नहीं बची है। तो उनकी पहल पर हुई शुरुआत की चमक भी गायब हो गई है।

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