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रसूखदारों की रक्षक पुलिस?

ऐसी शिकायतें आम हैं कि लोग बार-बार पुलिस के पास अपनी शिकायत लेकर जाते हैं, लेकिन पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं करती या दर्ज करने में देर करती है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में एक ऐतिहासिक फैसले के तहत आठ दिशा निर्देश दिए गए थे।

महाराष्ट्र के दो हालिया मामलों ने फिर उजागर किया है कि देश में रसूखदार लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराना कितनी बड़ी चुनौती है। समस्या पुरानी है। इस बारे में अदालतों ने कई बार स्पष्ट आदेश दिए हैँ। लेकिन ताजा घटनाओं से साफ है कि उन आदेशों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जाती हैँ। महाराष्ट्र के एक मामले में एक बड़े अधिकारी के बेटे ने अपने साथ लिव-इन में रह रही महिला को कार से कुचलने की कोशिश की। उस महिला के लिए एफआईआर दर्ज कराना टेढी खीर साबित हुआ। और जब पुलिस ने मामला दर्ज किया, तब ऐसी आसान धाराएं लगा दीं, जिससे आरोपी को तुरंत जमानत मिल गई। दूसरे मामले में आरोप एक बड़े उद्योगपति पर लगा। पीड़िता की शिकायत के मुताबिक उद्योगपति ने जनवरी 2022 में उन पर यौन हमला किया था। महिला ने मुंबई पुलिस के पास इस मामले की शिकायत फरवरी 2023 में की। लेकिन जब दिसंबर 2023 तक पुलिस ने कोई कदम नहीं उठाया, तो महिला ने बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजे खटखटाया। इसके बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और पीड़िता का बयान दर्ज किया। उसके बाद पुलिस ने अदालत को बताया कि उसने बलात्कार समेत कई आरोपों पर मामला दर्ज कर लिया गया है।

उचित ही है कि इन मामलों से एक बार फिर भारत में पुलिस के रवैये को लेकर चर्चा शुरू हुई है। ऐसी शिकायतें आम हैं, जिनमें बताया जाता है कि लोग बार-बार पुलिस के पास अपनी शिकायत लेकर जाते हैं, लेकिन पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं करती या दर्ज करने में देर करती है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में एक ऐतिहासिक फैसले के तहत आठ दिशा निर्देश दिए गए थे। उनमें स्पष्ट कहा गया था कि अगर किसी पुलिस अधिकारी को किसी ‘संज्ञेय अपराध’ की जानकारी मिलती है, तो उसे एफआईआर दर्ज करनी होगी। इतना ही नहीं अदालत ने एफआईआर ना दर्ज करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के आदेश भी दिए थे। इसके बावजूद अक्सर एफआईआर को लेकर पुलिस के रवैये पर आज भी सवाल उठते हैं। खासकर ऐसा उन मामलों में होता है, जिनमें इल्जाम किसी रसूखदार व्यक्ति पर लगा हो।

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