Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

मोदी की रूस यात्रा

एक आकलन यह है कि प्रधानमंत्री उन बहुपक्षीय मंचों की बैठक में जाने को लिए ज्यादा इच्छुक नहीं हैं, जहां चीन की केंद्रीय भूमिका बन गई हो। लेकिन इसका असर रूस से द्विपक्षीय रिश्तों पर ना पड़े, इसे सुनिश्चित करना भी मोदी की प्राथमिकता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आज से शुरू हो रही दो दिन की रूस यात्रा और उनके शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में ना जाने संबंधी खबरें मीडिया में लगभग एक साथ आईं। लाजिमी है कि इन दोनों के बीच संबंध देखा गया। उसके बाद से इसको लेकर भी कयास जारी है कि मोदी अगले सितंबर में रूस के कजान शहर में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में जाएंगे या नहीं। एक आकलन यह है कि प्रधानमंत्री उन बहुपक्षीय मंचों की बैठक में जाने को लिए ज्यादा इच्छुक नहीं हैं, जहां चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी आने वाले हों और जिन मंचों में चीन की केंद्रीय भूमिका बन गई हो। लेकिन इसका असर रूस से द्विपक्षीय रिश्तों पर ना पड़े, इसे सुनिश्चित करना भी मोदी की प्राथमिकता है। इसलिए उन्होंने कजाख़स्तान की राजधानी अस्ताना में 3-4 जुलाई को हुए एससीओ शिखर सम्मेलन के तुरंत बाद मास्को जाने का फैसला किया। गौरतलब है कि यूक्रेन में रूस की विशेष सैनिक कार्रवाई शुरू होने के बाद यह मोदी का पहला रूस दौरा है।

उन्होंने अब तक की अपनी आखिरी रूस यात्रा कोरोना महामारी के पहले 2019 में की थी, जब वे भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने लिए वहां गए थे। इस बीच मोदी सरकार की प्राथमिकता रूस के साथ दीर्घकालिक संबंध को कायम रखने के साथ-साथ पश्चिमी देशों से रिश्तों को प्रगाढ़ करने की रही है। आज जब उन दोनों पक्षों में तनाव चरम पर है, इस मकसद को साधने के लिए भारत संतुलन बैठाने की एक बारीक कोशिश में शामिल नज़र आया है। रूस आज भी भारत का एक महत्त्वपूर्ण रक्षा सहयोगी है। इसके अलावा यूक्रेन युद्ध के बाद से रूस भारत का प्रमुख व्यापार भागीदार भी बन गया है। इस अवधि में वह भारत के लिए सस्ते दाम पर कच्चे तेल का स्रोत बना रहा है। इस बीच ऐसी खबरें रही हैं कि रूस से संपर्क सीमित करने के लिए भारत पर अमेरिका का दबाव बढ़ता चला गया है। इसी पृष्ठभूमि में मोदी की मास्को यात्रा हो रही है। और इसीलिए इसके परिणामों पर सबकी बारीक नज़र लगी हुई है।

Exit mobile version