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चुनौती यह है कि जिन कारणों से लोग बेचैन हैं, उन्हें दूर की ठोस योजना पर विचार किया जाए? उन गंभीर मुद्दों पर विपक्षी दलों को जुमलाबाजी और बिना ठोस योजना के गारंटी घोषित करने के मोह से बचना चाहिए।

आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को जो झटका लगा, उस बारे में सियासी हलकों में यह आम राय है कि व्यापक बेरोजगारी और बढ़ती महंगाई इसका प्रमुख कारण हैं। अपने सामने अवसरों का अभाव देख रहे लोगों- खासकर नौजवानों ने अनेक राज्यों में सत्ताधारी पार्टी को सबक सिखाने के मकसद से मतदान किया। यह अच्छी बात है कि इस राजनीतिक घटनाक्रम को अपनी जीत बताने के बजाय कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि यह चुनाव आम जन ने लड़ा। यानी उसे ही माहौल में आए बदलाव का श्रेय है। इस समझ को आगे बढ़ाएं, यह माना जाएगा कि अपने कष्टप्रद वर्तमान और लुटते भविष्य से परेशान लोगों ने उनकी मुसीबत से बेखबर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सख्त संदेश भेजने के लिए विपक्षी दलों को माध्यम बनाया। परिणाम यह है कि विपक्षी दलों के लिए अपनी भूमिका और प्रासंगिकता फिर से बनाने का एक अवसर सामने आया है। अब बड़ा प्रश्न है कि क्या विपक्षी दल इस अवसर का सही उपयोग करेंगे?

इसकी पहली शर्त होगी कि मंगलवार को आए चुनाव नतीजों को अपनी जीत मानने की खुशफहमी से वे बचें। तब उन्हें अपने सामने खड़ी कठिन चुनौती नजर आएगी। चुनौती यह है कि जिन कारणों से लोग बेचैन हैं, उन्हें दूर की ठोस योजना पर विचार किया जाए? उन गंभीर मुद्दों पर विपक्षी दलों को जुमलाबाजी और बिना ठोस योजना के गारंटी घोषित करने के मोह से बचना चाहिए। उन्हें यह अवश्य याद रखना चाहिए कि उनके पास हिंदुत्व जैसा भावनात्मक औजार नहीं है, जिससे रोजमर्रा की समस्याओं से परेशान लोगों को भी वे अपना वोट बैंक बना सकें। इस चुनाव में निसंदेह भाजपा की राजनीतिक पराजय हुई है, लेकिन चुनावी तौर पर उसे और उसके गठबंधन को निर्णायक रूप से नहीं हराया जा सका है। दरअसल, भाजपा के राष्ट्रीय वोट प्रतिशत में सिर्फ एक फीसदी की गिरावट आई है। 2014 से तुलना करें, तो भाजपा को इस बार भी छह प्रतिशत अधिक वोट मिले। इसके अलावा कई राज्यों में उसका नया विस्तार भी हुआ है। इसलिए विपक्ष को खुशफहमी नहीं पालनी चाहिए। उसे अपनी ऊर्जा नीतिगत विकल्प सोचने में लगानी चाहिए।

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