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टूटी उम्मीदों की मिसाल

जब किसी शॉपिंग मॉल में 40 फीसदी से ज्यादा दुकानें खाली हो जाती हैं, तो उसे ‘घोस्ट मॉल’ करार कर दिया जाता है। रिपोर्ट बताती है कि 2022 में ऐसे भुतहा मॉल 57 से बढ़कर 64 हो गए। 132 मॉल इस रास्ते पर हैं।

एक ताजा रिपोर्ट बताती है कि भारत में शॉपिंग मॉल बुरे दौर से गुजर रहे हैं। पिछले दो साल में बहुत से छोटे शॉपिंग माल बंद हो गए। बेशक इसकी एक प्रमुख वजह ऑनलाइन खरीदारी का बढ़ा चलन है। लेकिन उससे अधिक महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि जिस तेजी से उपभोक्ता वर्ग में वृद्धि का अनुमान लगाते हुए एक दौर में मॉल बने, ऊंची क्रयशक्ति वाले वैसे उपभोक्ताओं की असल संख्या उससे काफी बढ़ी है। भारतीय बाजार में ऊंची उम्मीदें बनने का दौर 21वीं सदी के आरंभ के साथ आया। उसी दौर में कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री तेजी से फैली। हाउजिंग सोसाइटियों के साथ-साथ शॉपिंग मॉल का निर्माण भी इसके पीछे एक कारण रहा। 2007 में मार्केट एजेंसी मैंकिंसी ने बहुचर्चित अनुमान लगाया था कि 2025 तक भारतीय मध्य वर्ग 58 करोड़ लोगों का हो जाएगा। जबकि फिलहाल, बमुश्किल 10 से 15 करोड़ लोग उच्च उपभोग क्षमता रखने वाले इस वर्ग का हिस्सा हैं।

कोरोना महामारी के दौरान आम तौर पर मध्यवर्गीय उपभोग पर जोरदार प्रहार हुआ, जिससे अर्थव्यवस्था अभी तक संभल नहीं पाई है। उसके जो नतीजे हुए हैं, उनमें एक पर रियल एस्टेट कंसल्टेंसी फर्म नाइट एंड फ्रैंकलिन नाम की संस्था अपनी रिपोर्ट में रोशनी डाली है। इस रिपोर्ट के मुताबिक मॉल्स के अंदर खाली दुकानों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। जब किसी मॉल में 40 फीसदी से ज्यादा दुकानें खाली हो जाती हैं, तो उसे ‘घोस्ट मॉल’ करार कर दिया जाता है। रिपोर्ट बताती है कि 2022 में ऐसे भुतहा मॉल 57 से बढ़कर 64 हो गए। स्पष्टतः यह ग्राहकों में मांग की कमी का संकेत है। यह स्थिति बड़े पैमाने पर बेरोजगारी का कारण बन रही है। कुल मिलाकर इस स्थिति का छोटे व्यापारियों और सेवा प्रदाताओं पर सबसे खराब असर पड़ रहा है। भारत के जीडीपी में निजी उपभोग की हिस्सेदारी 60 फीसदी है। 2023 की आखिरी तिमाही में अर्थव्यवस्था 8.4 फीसदी की दर से बढ़ी, लेकिन निजी उपभोग में सिर्फ 3.5 फीसदी की वृद्धि हुई। ऐसे ही रुझान का परिणाम है कि देश में एक लाख वर्ग फुट क्षेत्रफल वाले 132 शॉपिंग मॉल भुतहा होने के कगार पर हैं।

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