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यकीन है, उम्मीद है!

जिन योजनाओं को 2024-25 के बजट में शामिल किया गया है, उनके बारे में इसको लेकर कोई अस्पष्टता नहीं होना चाहिए कि इनके शुरुआत का वर्ष कौन-सा होगा। तो फिर रोजगार संबंधी योजनाओं पर वित्त सचिव के यकीन और उम्मीद का क्या अर्थ है?

वित्त सचिव टीवी सोमनाथन ने एक मीडिया इंटरव्यू में भरोसा जताया है कि केंद्रीय बजट में घोषित रोजगार और कौशल प्रशिक्षण की योजनाएं इसी वित्त वर्ष में शुरू हो जाएंगी। इनमें एक करोड़ नौजवानों को टॉप 500 कंपनियों में ट्रेनिंग देने की योजना भी शामिल है। उन्होंने कहा कि इस योजना का डिजाइन उद्योग जगत के साथ राय-मशविरा कर तैयार किया जाएगा। सोमनाथन ने कहा- ‘हमें उम्मीद है कि ये सभी योजनाएं इसी वित्त वर्ष में शुरू हो जाएंगी। हमने रोजगार प्रोत्साहन योजनाओं का कवरेज यथासंभव व्यापक रखने का प्रयास किया है। हमने इन्हें क्षेत्र विशेष या तकनीक विशिष्ट रखने की कोशिश नहीं की है।’ पहली बात, इन योजनाओं को 2024-25 के बजट में शामिल किया गया है, तो इसको लेकर कोई अस्पष्टता नहीं होना चाहिए कि इनके शुरुआत का वर्ष कौन-सा होगा। तो फिर वित्त सचिव के यकीन और उम्मीद का क्या अर्थ है? क्या यह माना जाए कि सरकार ने बिना किसी योजना और तैयारी के बजट में इन योजनाओं का एलान कर दिया? शक तो तभी हुआ था, जब बजट में इनके लिए रकम का प्रावधान देखने को नहीं मिला। बाद में वित्त मंत्री ने कहा कि ट्रेनिंग योजनाओं को सीएसआर के तहत लागू किया जाएगा।

ऐसी बातों से योजनाओं के बारे में सरकार का तदर्थ रुख सामने आया है। ऐसा लगता है कि 2024 के आम चुनाव में लगे झटके के बाद सरकार को लगा कि उसे रोजगार के मुद्दे पर कुछ करते दिखना चाहिए। सरकार के आर्थिक सलाहकारों के साथ बैठक में प्रधानमंत्री ने भी कहा था कि इस बार बजट में ध्यान रोजगार पर केंद्रित होना चाहिए। तो वित्त मंत्री ने बिना पूरा होमवर्क किए कुछ घोषणाएं उसमें शामिल कर लीं! अगर आज की राजनीतिक शब्दावली में कहें, तो कुछ जुमलों को बजट दस्तावेज में जगह दे दी। मगर मुद्दा गंभीर है। बजट सरकार की संसदीय जवाबदेही से जुड़ा विषय है। जो योजनाएं बजट दस्तावेज के हिस्से के रूप में पारित होती हैं, उनके बारे में ऐसा नजरिया अस्वीकार्य होना चाहिए। बजट सिर्फ ऐसी सुर्खियां गढ़ने का मौका नहीं होना चाहिए, जिनका कोई ठोस आधार ना हो।

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