मौसम के बदलते पैटर्न का असर सभी तरह की फसलों पर पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण इसकी आशंका पहले से थी, लेकिन तब मौसम के मुताबिक खेती को समायोजित करने के उपायों पर ध्यान नहीं दिया गया।
दालों के बाद अब गेहूं के दाम में भी तेजी से उछाल की खबर है। चर्चा यहां तक शुरू है गई है कि दालों की तरह भारत में गेहूं के आयात की स्थितियां भी लगातार बनी रह सकती हैं। दालों की उपज लगातार खपत से कम बनी हुई है, जबकि गेहूं के साथ अभी हाल तक यह बात नहीं थी। बल्कि दो साल पहले तक भारत गेहूं का एक बड़ा निर्यातक था। मगर इस साल आशंका है कि सरकार ने किसानों से गेहूं खरीद का जो लक्ष्य रखा था, वह पूरा नहीं हो पाएगा। सरकार का लक्ष्य 30 मिट्रिक टन गेहूं खरीद का है। मौसम के प्रतिकूल असर के कारण इस बार मध्य प्रदेश में गेहूं की पैदावार कम रही। इससे गेहूं के दाम बढ़े और बाजार में प्राइवेट खरीदारों से सरकारी एमएसपी की तुलना में अधिक भाव मिलने लगा। इसलिए किसानों ने सरकार को कम गेहूं बेचा। इसका असर सरकार की कुल खरीद पर पड़ा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल में गेहूं का थोक मूल्य पिछले साल की तुलना में 5.3 प्रतिशत ज्यादा रहा। गौरतलब है कि अप्रैल में खाद्य महंगाई दर 8.63 प्रतिशत दर्ज हुई। खाद्य मुद्रास्फीति की दर ऊंची बनी रहने के पीछे एक बड़ा कारण दालों की महंगाई है।
अप्रैल में दालों की महंगाई दर 16.84 प्रतिशत रही। दाल पैदावार में गिरावट का सिलसिला साल-दर-साल जारी है। इस तरह इस क्षेत्र में आत्म-निर्भर बनने की योजनाएं एक तरह से नाकाम हो चुकी हैं। नतीजा दालों का बढ़ता आयात है। 2023-24 में ये आयात 3.90 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया। वैसे इसमें रिकॉर्ड 2025-16 में बना था, जब 4.24 डॉलर का आयात हुआ। मगर उसके बाद से इसमें गिरावट दर्ज हो रही थी। विशेषज्ञों के मुताबिक मौसम के बदलते पैटर्न का असर सभी तरह की फसलों पर पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण इसकी आशंका पहले से थी, लेकिन तब मौसम के मुताबिक खेती को समायोजित करने के उपायों पर ध्यान नहीं दिया गया। अब उसका परिणाम सामने आने लगा है। यह गंभीर चिंता की बात है कि भारत की बड़ी मुश्किल से हासिल खाद्य आत्म-निर्भरता इससे प्रभावित हो सकती है।