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जजों की बिगड़ी जुब़ान!

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हलकी, अप्रासंगिक टिप्पणियों से ना सिर्फ जजों की नकारात्मक छवि बनती है, बल्कि पूरी न्यायपालिका प्रभावित होती है। स्वागतयोग्य है कि अब सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका की छवि की रक्षा करने की पहल की है।

इससे ज्यादा अफसोस की बात और क्या होगी कि सुप्रीम कोर्ट को उच्चतर न्यायपालिका के जजों को जुब़ान पर काबू रखने के लिए चेतावनी जारी करने पड़े! लेकिन ऐसी ही स्थिति हमारे सामने है। कर्नाटक हाई कोर्ट के जज वी. श्रीशानंद की “सांप्रदायिक” एवं “स्त्री-द्रोही” टिप्पणियों से परेशान सुप्रीम कोर्ट ने अपनी पहल पर पांच जजों की बेंच बनाई। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली इस बेंच ने बुधवार को निर्णय दिया कि जस्टिस श्रीशानंद का बेंगलुरू के एक इलाके को ‘पाकिस्तान’ बताना सैंवैधानिक रूप से गलत है। साथ ही कोर्ट ने जजों के लिए आम चेतावनी जारी की। कहा कि वे ऐसी हलकी टिप्पणियां ना करें, जिनसे उनके सांप्रदायिक एवं स्त्री-द्रोही पूर्वाग्रह जाहिर होते हों। जस्टिस श्रीशानंद ने एक महिला अधिवक्ता को संबोधित करते हुए महिलाओं के लिए अपमानजनक बातें कही थीं। यह सुनना अजीब लगता है, लेकिन यह अफसोसनाक स्थिति आज की हकीकत है कि जज सामान्य विवेक को आहत करने वाली बातें कह डालते हैं। जजों को कैसे बोलना चाहिए, अगर यह सुप्रीम कोर्ट को बताना पड़ रहा है, तो न्यायपालिका आज किस हाल में है, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा- ‘मामले से असंबंधित स्त्री-द्रोही या पूर्वाग्रहयुक्त अन्य टिप्पणियां करने के बजाय जजों को अनिवार्य रूप से संविधान के ऊसलों का पालन करना चाहिए।’ वैसे यह सुप्रीम कोर्ट के लिए भी आत्म-मंथन का विषय है कि उसकी कॉलेजियम प्रणाली ऐसे व्यक्तियों को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जज बनाने की सिफारिश कैसे कर डालती है, जो बाद में इस तरह की बातें कोर्ट रूम बोलते हैं? आखिर ऐसी टिप्पणी का यह कोई अकेला मामला नहीं है। हाल के वर्षों में जजों की ओर से संविधान की भावना के खिलाफ जाकर टिप्पणियां करने के मामले बढ़ते चले गए हैं। खुद सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हलकी, अप्रासंगिक टिप्पणियों से ना सिर्फ जजों की नकारात्मक छवि बनती है, बल्कि उससे पूरी न्यायपालिका पर खराब असर पड़ता है। स्वागतयोग्य है कि अब सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका की छवि की रक्षा करने की जिम्मेदारी उठाई है। उसे इस मामले में अधिक जागरूकता दिखाने की आवश्यकता है।

 

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