मानव सरोवर की यात्रा फिर शुरू करने और द्विपक्षीय व्यापार सुगम बनाने संबंधी सहमतियां डोवाल- वांग वार्ता का व्यावहारिक नतीजा हैं। दूरगामी नजरिए से सीमा विवाद के हल पर 2005 में तय हुईं राजनीतिक कसौटियों पर नई सहमति ज्यादा अहम है।
भारत और चीन के विशेष प्रतिनिधियों के बीच सीमा विवाद के निपटारे पर बीजिंग में हुई वार्ता का सार यह है कि चार साल तक तनावपूर्ण रहने के बाद दोनों का रिश्ता अब पटरी पर लौट रहा है। भारतीय प्रतिनिधि अजित डोवाल और चीनी प्रतिनिधि वांग यी की वार्ता में, चीनी विदेश मंत्रालय की विज्ञप्ति के मुताबिक, छह सूत्री सहमति बनी। भारतीय विज्ञप्ति में उन छह सूत्रों का स्पष्ट उल्लेख तो नहीं है, लेकिन कहा गया है कि दोनों विशेष प्रतिनिधियों ने आपसी रिश्ते को सकारात्मक दिशा प्रदान की है। तिब्बत के रास्ते से मानव सरोवर की यात्रा फिर शुरू करने और द्विपक्षीय व्यापार को सुगम बनाने संबंधी सहमतियां इस वार्ता का व्यावहारिक नतीजा हैं। मगर दूरगामी लिहाज से सीमा विवाद हल करने के लिए 2005 में दोनों देशों के बीच तय हुईं राजनीतिक कसौटियों पर नई सहमति ज्यादा अहम है। India China border dispute
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1988 से 2005 तक भारत- चीन संबंध सकारात्मक दिशा में थे। उसी क्रम में 2005 में बनी सहमति को एक बड़ी कामयाबी माना गया था। डोवाल- वांग वार्ता में इस पर भी जोर दिया गया कि सीमा विवाद का हल पैकेज के रूप में होगा। यानी पूरब में अरुणाचल और पश्चिम में लद्दाख सीमाओं पर जो मतभेद हैं, उन पर एकमुश्त सहमति बनाई जाएगी। हर समाधान का आधार लेन-देन की भावना होती है। दोनों देश अगर इस भावना पर रजामंद हो रहे हों, तो आशा की जा सकती है कि इस लंबे विवाद का हल निकल आएगा। बहरहाल, इस रास्ते में अनेक दिक्कतें हैं। दोनों देशों की अंदरूनी राजनीतिक प्रक्रिया और अंतरराष्ट्रीय पहलुओं का साया भारत-चीन संबंधों पर पड़ता रहा है। India China border dispute
इसके अलावा यह देखना होगा कि क्या सचमुच अब नए सिरे से उभर रही सहमतियों पर चीन कायम रहता है। भारत में अक्सर यह संदेह रहा है कि ऐसी सहमतियों का इस्तेमाल चीन सीमा के करीब अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए करता है। वैसे चीन से बेहतर रिश्ता दोनों देशों की आर्थिक जरूरत है, जैसाकि इस वर्ष संसद में पेश हुए आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया था। इसलिए फिलहाल चीजें पटरी पर लौट रही हैं, तो उसे एक सकारात्मक घटनाक्रम कहा जाएगा।