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बांग्लादेश ने की अनसुनी

Bangladesh

Bangladesh: बांग्लादेश ने भारत की चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया है। ऐसे में वह समाधान की कोशिश करेगा, इसकी संभावना कम है। उसके इस रुख से वहां के अल्पसंख्यकों की चिंता बढ़ेगी। संभव है, इससे उन पर ज्यादती करने वाले तत्वों का हौसला और बढ़े।

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बांग्लादेश के साथ संवाद बनाने की भारत पहली कोशिश कोई खास नतीजा नहीं दे पाई। संवाद बना रहे और शिकायतें एक-दूसरे के सामने रखी जाएं, इसका तो अपना महत्त्व होता है।

यह हमेशा ही दूर से बयानबाजी या किसी तीसरे पक्ष के जरिए तार जोड़ने से बेहतर होता है। इस लिहाज से विदेश सचिव विक्रम मिसरी को ढाका भेजने की पहल स्वागतयोग्य मानी जाएगी।

लेकिन यह साफ है कि मकसद अगर यह संदेश देना हो कि भारत ने हिंदू समुदाय पर ज्यादती के मुद्दे पर बांग्लादेश को फटकार लगा दी है, तो इस तरीके से बात आगे नहीं बढ़ेगी।

बेशक, मिसरी ने बांग्लादेश के विदेश सचिव मोहम्मद जसीमुद्दीन को “अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा और उनके कल्याण से संबंधित अपनी चिंताओं” को बताया।

भारत की चिंताओं पर ध्यान

साथ ही “सांस्कृतिक, धार्मिक एवं कूटनीतिक संपत्तियों पर हमले की कुछ अफसोसनाक घटनाओं” को उठाया।

लेकिन बांग्लादेश ने इन इल्जामों को दुष्प्रचार बता कर इनका सिरे से खंडन कर दिया। जसीमुद्दीन ने यह भी कह डाला कि “दूसरे देशों को बांग्लादेश के आंतरिक मामलों पर बोलने से बाज आना चाहिए”।

जिस रोज इन बातों का आदान-प्रदान हुआ, उसी रोज बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद युनूस ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के बयानों को तनाव बढ़ाने वाला बताया।(Bangladesh)

उन्होंने अफसोस जताया कि हसीना ऐसे बयान भारत की जमीन से दे रही हैं। स्पष्टतः बांग्लादेश ने भारत की चिंताओं पर ध्यान देने की जरूरत महसूस नहीं की है। ऐसे में वह समाधान की कोशिश करेगा, इसकी संभावना कम ही है।

उसके इस रुख से बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों की चिंता बढ़ेगी। संभव है कि इससे उन पर ज्यादती करने वाले तत्वों का हौसला और बढ़े।

इसलिए भारत सरकार को सोचना होगा कि मौजूदा परिस्थितियों के बीच वहां के अल्पसंख्यको की सुरक्षा निश्चित करने के लिए वह क्या पहल कर सकती है।

क्या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके लिए किसी पहल की गुंजाइश है? इन सारे विकल्पों पर सोचा जाना चाहिए।

बहरहाल, यह साफ है कि सख्त सार्वजनिक वक्तव्य देने और वहां की घटनाओं को लेकर भारत के अंदर एक खास तरह का सियासी माहौल बनाने से कुछ हासिल नहीं हो रहा है।

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