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मुख्यमंत्री की ये हैसियत!

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एक तकनीकी आधार पर मुख्यमंत्री को उनके आवास से बेदखल कर दिया गया है। क्या किसी केंद्र शासित प्रदेश में भी बहुमत से निर्वाचित पार्टी के विधायक दल नेता के साथ ऐसा बर्ताव लोकतांत्रिक मान्यता और मर्यादा के अनुरूप है?

मान्यता है कि लोकतंत्र में नेताओं की हैसियत मतदाता बनाते हैं। जो नेता मतदाताओं को लुभाने में जितना कामयाब हो, उसकी हैसियत उतनी बड़ी होती है। मनोनीत पदाधिकारियों से अपेक्षा होती है कि वे निर्वाचित नेताओं का सम्मान करते हुए अपने कर्त्तव्य का पालन करें। मगर भारत में, इस दौर में आकर यह मान्यता सिर के बल खड़ी कर दी गई है। बल का इस्तेमाल करते हुए दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी के घरेलू सामान को उस आवास से बाहर कर दिया गया, जिसके बारे में आम धारणा है कि वह मुख्यमंत्री निवास है। दिल्लीवासियों को अब पता चला है कि दिल्ली में कोई स्थायी मुख्यमंत्री आवास नहीं है।

मुख्यमंत्री कहां रहेंगे, यह इस पर निर्भर करता है कि लेफ्टिनेंट गवर्नर उन्हें कौन-सा निवास आवंटित करते हैं। नवरात्रि शुरू होते ही पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपना सरकारी आवास खाली कर दिया। नई मुख्यमंत्री आतिशी अपने सामान के साथ वहां रहने चली गईं। अब बताया गया है कि एलजी ने उन्हें ये मकान आवंटित नहीं किया था। इसलिए उनका प्रवेश अवैध था। अब संभव है कि एलजी वही मकान आतिशी को आवंटित कर दें। तब वे वहां रह सकेंगी (अन्यथा जो मकान आवंटित होगा, वहां उन्हें रहना होगा)। इस तकनीकी आधार पर मुख्यमंत्री को उस मकान से बेदखल कर दिया गया है। कहा जाएगा कि दिल्ली की विशेष परिस्थिति है। यह पूर्ण राज्य नहीं है।

मगर क्या किसी केंद्र शासित प्रदेश में भी विशाल बहुमत से निर्वाचित पार्टी के विधायक दल नेता के साथ तकनीकी आधार पर ऐसा बर्ताव लोकतांत्रिक मान्यता और मर्यादा के अनुरूप है? जम्मू-कश्मीर में मुख्यमंत्री बनने जा रहे उमर अब्दुल्ला को इस घटना में अपना भविष्य जरूर नज़र आया होगा। आखिर केंद्र ने नए प्रावधानों के साथ केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में निर्वाचित सरकार की हैसियत दिल्ली सरकार जैसी ही बना दी है। अब चूंकि यह पैटर्न बन गया है, तो कभी किसी राज्य और वहां की निर्वाचित सरकार को ऐसी हैसियत में पहुंचाने की आशंका ठोस रूप से मौजूद है। इस हाल में भारतीय लोकतंत्र एवं संघवाद को लेकर क्या समझ बनाई जानी चाहिए, बेशक यह आज एक मौजूं सवाल बन गया है।

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