Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

डिसइन्फ्लेशन की गिरफ्त में

हालिया सरकारी आंकड़ों के मुताबिक आम मुद्रास्फीति दर अब काबू में आ गई है, लेकिन कृषि और ग्रामीण मजदूरों के लिए खुदरा मुद्रास्फीति दर क्रमशः 7.08 और 6.92 प्रतिशत के ऊंचे स्तर पर बनी हुई है। इस परिघटना को डिसइन्फ्लेशन के रूप में समझा जा रहा है।

इन्फ्लेशन (मुद्रास्फीति) और डिफ्लेशन (मुद्रा संकुचन) आर्थिक चर्चाओं में अक्सर आने वाले शब्द हैं। लेकिन हाल में इससे संबंधित एक नया शब्द डिसइन्फ्लेशन चर्चित हुआ है। ऐसा इसलिए हुआ है कि क्योंकि कुछ ऐसी नई स्थितियां बनी हैं, जिन्हें उपरोक्त दो शब्दों से समझना कठिन हो गया है। इन्फ्लेशन वह स्थिति होती है, जब मांग की तुलना में सामग्रियों की कम आपूर्ति के कारण चीजों के दाम बढ़ जाते हैं। वैसे कई बार कंपनियां अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए बाजार पर अपने एकाधिकार का इस्तेमाल कर भी अनुचित रूप से दाम बढ़ाती हैं, जैसाकि कोरोना महामारी के बाद लगभग पूरी दुनिया में देखने को मिला है। डिफ्लेशन वह स्थिति होती है, जब मांग से अधिक आपूर्ति के कारण चीजों के दाम गिर जाते हैं। उपभोक्ताओं की वास्तविक आय घटने की स्थिति में अक्सर ऐसा होता है। डिसइन्फ्लेशन वह स्थिति है, जब हेडलाइन इन्फ्लेशन (मुद्रास्फीति की कुल दर) घट जाती है, लेकिन आम लोगों के उपभोग वाली वस्तुएं फिर भी महंगी बनी रहती हैं।

भारत में अभी यही स्थिति पैदा हो गई है। हालिया सरकारी आंकड़ों के मुताबिक आम मुद्रास्फीति दर अब काबू में आ गई है, लेकिन कृषि और ग्रामीण मजदूरों के लिए खुदरा मुद्रास्फीति दर क्रमशः 7.08 और 6.92 प्रतिशत के ऊंचे स्तर पर बनी हुई है। स्थिति तरह खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति दर 8.42 प्रतिशत तक बनी हुई है। अलग-अलग राज्यों के इन आंकड़ों में भी अंतर है। यानी कुछ राज्यों में अन्य राज्यों की तुलना में आम उपभोग वाली चीजों की महंगाई अधिक तेजी से बढ़ रही है। और ऐसा लंबे समय से बना हुआ है। जाहिर है, कुल मुद्रास्फीति दर देश में महंगाई की असल सूरत जानने का सही पैमाना नहीं रही है। अभी हाल में यह ट्रेंड अमेरिका जैसे विकसित बाजारों में भी देखने को मिला है। इसीलिए डिसइन्फ्लेशन को इस समय की एक बड़ी परिघटना माना जा रहा है। भारत में भी इस पहलू पर अधिक रोशनी डालने की जरूरत है। वरना, तमाम वित्तीय एवं मौद्रिक नीतियां हेडलाइन इन्फ्लेशन को देखकर बनाई जाती रहेंगी, जिसका बुरा असर कम आय वर्ग वाले देश के आम जन पर पड़ेगा।

Exit mobile version