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मोबाइल से पैदा मुश्किलें

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अध्ययनों के मुताबिक लंबे समय तक स्क्रीन के करीब रहने पर छोटे बच्चों की संवाद क्षमता और समस्याएं हल करने के उनके कौशल प्रभावित हो सकते हैं। इसलिए एक साल से कम उम्र के बच्चों को स्क्रीन के संपर्क में बिल्कुल नहीं लाना चाहिए।

मोबाइल पर ज्यादा समय गुजारने का कम उम्र बच्चों पर खराब असर होता है। यह बात ना सिर्फ आम माता-पिता का तजुर्बा है, बल्कि विशेषज्ञों ने भी अपने शोध से इस बात की पुष्टि की है। इसके बावजूद बच्चों के अधिक समय तक स्क्रीन के सामने रहना एक आम चलन बन गया है। कुछ रोज पहले एक सर्वे में बताया गया कि यह चलन भारत में 89 प्रतिशत माताओं की एक प्रमुख चिंता बन गया है। मार्केट रिसर्च कंपनी टेकऑर्क के इस सर्वे में 600 कामकाजी मांओं ने भाग लिया। रिपोर्ट में माताओं के अनुभव के आधार पर कहा गया कि स्क्रीन टाइम बढ़ने से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है। साथ ही  उनके मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य पर भी खराब असर पड़ता है। इसके पहले हुए अध्ययनों से सामने आ चुका है कि लंबे समय तक स्क्रीन के करीब रहने पर छोटे बच्चों की संवाद क्षमता और समस्याएं हल करने के उनके कौशल प्रभावित हो सकते हैं। इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स भी यह कह चुकी है कि एक साल से कम उम्र के बच्चों को स्क्रीन के संपर्क में बिल्कुल नहीं लाना चाहिए।

लेकिन हकीकत यह है कि इन दिशा-निर्देशों का बमुश्किल ही पालन किया जाता है। अक्सर होता यह है कि खुद माता-पिता छोटे बच्चों को उलझाए रखने के लिए एनीमेशन वीडियो दिखाते या गाने सुनाते हैं औ मोबाइल उन्हें पकड़ा देते हैं। जबकि विशेषज्ञों के मुताबिक जरूरत छोटे बच्चों को संवाद के लिए प्रोत्साहित करने की होती है। मोबाइल पर टिके रहने से बच्चों में खुल कर बातचीत करने या अपनी इच्छाओं को जाहिर करने का कौशल ठीक से विकसित नहीं हो पाता है। लंबे समय तक स्क्रीन पर रहने से शारीरिक गतिविधियों के अवसर भी कम हो जाते हैं। ज्यादा स्क्रीन टाइम का खराब असर नींद के पैटर्न पर पड़ता है। इससे आगे चल कर बच्चों को अपना ध्यान केंद्रित करने में मुश्किल पेश आ सकती है। वैसे तो अपने बच्चों को ऐसी समस्याओं से बचाना माता-पिता का ही दायित्व है, मगर माता-पिता ऐसा कर पाएं, इसके लिए जरूरी है कि इसकी जागरूकता लाने के लिए प्रभावी अभियान चलाया जाए।

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