Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

जब एनकाउंटर नीति हो!

Badlapur Encounter

Badlapur Encounter: अनुज और अक्षय के मामले में समान तथ्य यह है कि जब उनका “एनकाउंटर” हुआ, वे पुलिस हिरासत में थे। इसलिए यह बात लोगों के गले नहीं उतर रही है कि उन्होंने कैसे पुलिस के लिए इतना खतरा पैदा कर दिया कि “एनकाउंटर” की स्थिति बन गई?

also read: राजस्थान के इस गांव को मिला भारत का सर्वश्रेष्ठ पर्यटक गांव का ताज

बाल यौन शोषण कांड का आरोपी

महाराष्ट्र में बदलापुर बाल यौन शोषण कांड के आरोपी का “एनकाउंटर” आरंभ से संदिग्ध था और अब यह एक बड़ा विवाद बन गया है। पुलिस ने कहानी यह बताई कि वह आरोपी अक्षय शिंदे को जांच-पड़ताल के सिलसिले में अपने साथ ले जा रही थी, तभी शिंदे ने एक पुलिस अधिकारी के रिवॉल्वर को छीन लिया और गोली चलाने की कोशिश की। तभी दूसरे पुलिसकर्मियों ने फायरिंग की, जिसमें वह मारा गया।

अब शिंदे के पिता के साथ-साथ पीड़ित बच्चियों के परिजनों ने भी हाई कोर्ट की पनाह ली है। उन्होंने कोर्ट से मामले की अपनी निगरानी में विशेष जांच दल (एसआईटी) से जांच कराने की गुजारिश की है। जिस रोज (सोमवार को) ये घटना हुई, उसी दिन उत्तर प्रदेश में जौहरी लूट कांड के आरोपी अनुज प्रताप सिंह भी “एनकाउंटर” में मारा गया। इसके पहले इस कांड का एक और आरोपी मंगेश यादव भी “एनकाउंटर” में मारा गया था। तब समाजवादी पार्टी सहित तमाम हलकों से आरोप लगा था कि पुलिस ने जाति देख कर मंगेश को मारा गया, जबकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सहजातीय आरोपी को पुलिस ने जेल भेज दिया।

एनकाउंटर की स्थिति बन गई?

मामला कुछ ज्यादा गरम हुआ था। अब संदेह जताया गया है कि जातिवाद के आरोप को गलत साबित करने के लिए अनुज का भी “एनकाउंटर” कर दिया गया है। अनुज और अक्षय दोनों के मामले में समान तथ्य यह है कि जब उनका “एनकाउंटर” हुआ, वे पुलिस हिरासत में थे। इसलिए यह बात लोगों के गले नहीं उतर रही है कि उन्होंने कैसे पुलिस के लिए इतना खतरा पैदा कर दिया कि “एनकाउंटर” की स्थिति बन गई?

कभी यह चलन में था कि पुलिस हिरासत की हर मौत के बारे में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को तुरंत रिपोर्ट करना जरूरी था तथा ऐसे मामलों की अनिवार्य जांच होती थी। लेकिन अब संस्थाएं अपनी धार खो चुकी हैं। उधर आरोप है कि खासकर भाजपा की राज्य सरकारों ने “एनकाउंटर” को राजकीय नीति बना लिया है। यह न्याय और संविधान की भावना का खुला उल्लंघन है, लेकिन इस दौर में इन भावनाओं का ख्याल कम-से-कम सरकारी स्तर पर शायद ही बचा है।

Exit mobile version