चीन का ये नया मॉडल

हाल में एक दिलचस्प रिपोर्ट आई है। इसके मुताबिक चीन के बिजनेस स्कूलों में ग्रैजुएशन कर रहे छात्रों के बीच अक्सर चर्चा होती है कि कैसे किसी कंपनी को अपने कर्मचारियों की हड़ताल से निपटना चाहिए। छात्रों की इस चर्चा को प्रोफेसर ध्यान से सुनते हैं। चर्चा में जब छात्र हड़ताल खत्म करने के बेहतर तरीके सुझाते हैं, तो शिक्षक उन्हें किताब में लिखी चीनी रणनीतियों के बारे में बताते हैं। गौरतलब है कि 1978 के बाद चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने बाजार सुधारों को अपनाया। उसके बाद देश में कई नई कंपनियां बनी। कंपनियों के बनने के बाद ही नई पीढ़ी के उद्यमियों को ट्रेनिंग देने की जरूरत महसूस होने लगी। चीन में 40 साल पहले तक देश में बिजनेस स्कूल में बारे में सोचा भी नहीं जाता था। लेकिन 1978 में जब कम्युनिस्ट पार्टी ने बाजार सुधार किए, तो चीन में कई कंपनियां पहुंचीं। बाजार ने विदेशी निवेश भी आकर्षित किया। जब नया पैसा चीन में पहुंचा तो देश में कंपनियों के प्रबंधन की जरूरत महूसस की जाने लगी। इसमें वहां के बिजनेस स्कूलों ने काफी योगदान दिया। आज इन स्कूलों में कारोबार को सहज ढंग से चलाने की शिक्षा दी जाती है। वहां सिद्धांत तो पश्चिमी देशों वाले ही पढ़ाए जाते हैं, लेकिन केस स्टडी चीन की होती हैं। संदेश यह होता है कि बाजार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा और परिवर्तन के बीच रचनात्मक बने रहना जरूरी है।
चीन अपनी सरकारी कंपनियों की बदौलत ही दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना हुआ है। वह तकरीबन 370 अरबपतियों का घर भी है। लेकिन समस्या यह है कि देश में अमीर और गरीब के बीच आर्थिक खाई गहराती जा रही है। कट्टर मार्क्सवादी इल्जाम लगाते हैं कि अब दरअसल चीन में पूंजीवाद की बातों को चीनी विशेषताओं वाले समाजवाद बता कर पेश किया जाता है। उनके मुताबिक अब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी कहने भर को ही मार्क्सवादी है। लेकिन हाल में संकेत मिले हैं कि चीन के मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग ये धारणा बदलने की कोशिश में है। पार्टी की बागडोर संभालने के बाद 2012 से उन्होंने पार्टी कैडर्स के लिए कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो को पढ़ना अनिवार्य बना दिया। एक बदलाव यह भी किया गया कि सभी शैक्षणिक संस्थाओं में पार्टी की एक होगी। इस पर अमल हुआ है। ये कमेटी सभी अहम निर्णयों में शामिल होती है। ये चीन का नया मॉडल है।
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