Wednesday

26-03-2025 Vol 19

श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

अहंकारी ट्रम्प और अवसरवादी वेंस की जोड़ी

आठ साल पहले तक जेडी वेंस को डोनाल्ड ट्रम्प जरा भी नहीं भाते थे। वेंस ने सार्वजनिक मंच से ट्रम्प को 'इडियट' बताया था और कहा था कि वे...

हमले से ट्रम्प की हकीकत नहीं बदली है

ट्रम्प के साथ जो कुछ हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण है, गलत है और उसकी जितनी निंदा की जाए, उतनी कम है।

अमेरिकी लोकतंत्र में फैलता जहर

ट्रंप की जान लेने की इस कोशिश से अमेरिका और सारी दुनिया स्तब्ध है। लेकिन यह घटना चौंकाने वाली नहीं है।

सूडान पर ध्यान देने की जरुरत

सूडानवासी दुनिया के सबसे बड़े विस्थापन संकट की पीड़ा झेल रहे हैं। लेकिन किसी को उनकी फिक्र नहीं है। और हो भी क्यों?

चीन की चिंता में मोदी की मॉस्को यात्रा

नरेंद्र मोदी दो दिन की यात्रा पर मास्को पहुंचे। वे कूटनीतिक उलझनों को कम करने और संबंधों और मजबूत बनाने के लिए बातचीत करने आए थे।

चिंता के साये में नाटो की 75वीं सालगिरह

युद्ध के शुरू होने से लेकर अब तक उसके डॉक्टरों ने रूसी बमबारी में घायल होने वाले बच्चों की जान बचाने का चुनौतीपूर्ण कार्य किया है

Pall of gloom and concern over NATO’s 75th anniversary

As leaders gather in Washington, uncertainties and confusion follows them. The shadow of ‘“For how long?” looming.

फ्रांस में गठबंधन का नया दौर

केवल एक हफ्ते में फ्रांस में जनमत का पेंडुलम अति दक्षिणपंथ से वामपंथ की ओर खिसक गया है। यह बदलाव चौंकाने वाला और अनापेक्षित है।

उदार लोकतंत्र के लिए ब्रिटेन से आशा की किरण

करीब 14 साल तक लगातार सत्ता में रहने के बाद इंग्लैंड की जनता ने कंजरवेटिव पार्टी को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। यह नतीजा अवश्यंभावी और अपेक्षित था।

UK Election: Labour goes ‘400 paar’ in a historic win

Yet, despite the overwhelming majority of Labour, the elections also revealed a divided, uncertain nation. And the rise of ‘alternatives’.

बाइडन ही है ट्रंप की काट!

वे अड़े हुए हैं। और उन्हें पूरा विश्वास है कि वे और केवल वे ही ट्रंप को धूल चटा सकते हैं।

Determined Biden vs Divided Democrats

Joe Biden isn’t going anywhere. He has declared that he will not drop out of the presidential race.

ईरान में चुनाव और लोग उदास!

उन्हें जिन उम्मीदवारों में से अपने पसंदीदा व्यक्ति को चुनना है, वे सभी राजनीति के विपरीत ध्रुवों पर विराजमान हैं। लोगों को बुरे और बदतर में से एक को...

Elections in Iran: Grim and Farcical

Discontent, Low Turnout, and a Grim Choice Between Reformist and Ultraconservative Candidates

सुनक हारेंगे, बुरी तरह?

चार जुलाई दिलचस्प दिन होगा। ब्रिटेन के लोग चाय और स्कोन के साथ इसका मज़ा लेंगे। मगर बाकी दुनिया की भी इसमें रूचि होगी।

फ्रांस में भी लिबरल आउट?

फ्रांस 'विकल्प' के तलाश में दक्षिणपंथी लोक-लुभावनवाद के चंगुल में फंसने की कगार पर है। 

पर बाइड़न की हिम्मत कायम!

हिम्मत बंधाने वाली थी वह यह थी कि एक नेकनीयत बुजुर्ग पूरी ताकत से एक दुष्ट, आतातायी व्यक्ति का मुकाबला कर रहा था।

पुतिन, किम और शी तीनों भाई-भाई !

दुनिया बदल रही है, पलट रही है और युद्धों में उलझ रही है। वही वह प्रजातंत्र और उसकी भाषा से दूर खिसक रही है।

जागों, गर्मी हमलावर है !

आसमान धधक रहा है। नीले, हरे, सफेद, भूरे- प्रकृति के सभी हसंते-खिलखिलाते विविध रंग रूआंसे हैं।

अनजान चेहरों का ‘वारिस पंजाब दे’ बनना!

राजनीतिक दृष्टि से 2024 का चुनाव 1984 जैसा नहीं है। जनता का एक हिस्सा सत्ताधारियों को पंजाब विरोधी और सिक्ख विरोधी मानता है।

‘तिहाड़ का बदला वोट से’ और प्रेसर कुकर!

मैंने कश्मीर को बेहतर समझने वाले एक मित्र से पूछा, "क्या सचमुच इंजीनियर राशिद को मिले वोट भारत के खिलाफ हैं?"

वाह! मतदाताओं, सलाम!

चुनाव शुरू से ही वैसा नहीं था जैसा नैरेटिव मार्च से बनाया जा रहा था। यह चुनाव कभी भी ‘अब की बार 400 पार’ का चुनाव नहीं था

बीजेपी की कढ़ाई उतर गई और कांग्रेस दफ्तर!

भाजपा भले ही सिंगल लार्जेस्ट पार्टी के रूप में उभरी हो मगर अब विपक्ष, क्षेत्रीय पार्टियां और भाजपा के गठबंधन साथी भी पहले से कहीं अधिक ताकतवर हैं।

काशी में उदासीनता है और नशा उतर गया है!

काशी बदल गयी है, उसका माहौल बदल गया है।... इस ऐतिहासिक, आदिशहर की प्राचीनता खो गई है।

इस चुनाव में न कहानी, न नैरेटिव

2024 का यह चुनाव, 2014 के दस साल बाद सिर्फ झूठ के अंबार के बीच हो रहा है। इस चुनाव की कोई कहानी नहीं है, कोई नैरेटिव नहीं है।

बिहार में तेजस्वी का तेज !

नालंदा नीतीश कुमार का अभेद्य किला है। यहाँ जनता उन्हें ही पसंद करती है। सन 1996 से लेकर अब तक उन्हें नालंदा से कोई हरा नहीं पाया है।

बंगाल को ‘चेंज’ चाहिए !

यह बहुत अजीब सा लगता है। बंगाली जनता भला भाजपा के पक्ष में? धुर वामपंथ से धुर दक्षिणपंथ? ये बात कुछ जमती नहीं। लेकिन आज यही बंगाल की हकीकत...

सोच लीजिए यहां किसकी हवा है!

कोलकत्ता में जानकारों की माने तो दक्षिण बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के तमामविरोधी लेफ्ट, भाजपा उम्मीदवारों का यह प्रमुख संकट है जो वे अपने को मतदाताओं के बीच नहीं...

बंगाल है तो मतदान उत्सव है, त्योहार है।

दरअसल बंगाल में महसूस होता है कि लोगों का वोट डालने का संबंध व्यक्तिगत उद्देश्यों से है तो सामूहिक पहचान से भी।

कोलकाता इज़ डिफरेंट, वाकई चुनाव हो रहे हैं!

कम से कम बाहर से देखने पर तो ऐसा ही लगता है। लड़ाई भाजपा बनाम टीएमसी है और यह आप कोलकत्ता में साफ महसूस कर सकते हैं।

विकल्प नहीं पर मुद्दे है और मार्केटिंग फेल!

हां, नरेन्द्र मोदी को हटाकर उनकी जगह लेने वाला कोई ठोस विकल्प नजर नहीं आ रहा है। और ना ही उन्हें गद्दी से उतारने की आग हर दिल में...

“सिक्स्थ सेंस है..बदलाव आएगा”- यशवंत सिन्हा

यह भाजपा और कांग्रेस के बीच भी नहीं है। यह नरेन्द्र मोदी और यशवंत सिन्हा के बीच है

झाऱखंड में हर तरफ आदिवासी पहेली!

गिरिडीह का मतलब होता है पहाड़ों की भूमि। और फिलहाल यहां जबरदस्त चुनावी घमासान है।

अर्जुन मुंडा, गीता कोडा सब अकेले अपने बूते!

खूंटी भाजपा का दुर्ग है, जहां सन् 1984 के बाद से (सिवाय 2004, के जब कांग्रेस पर किस्मतमेहरबान हुई थी) वहहर बार चुनाव जीती है।

शिंदे का ठाणे, कल्याण में सब कुछ दांव पर

जैसे अजीत पवार ने बारामती में अपना सब कुछ दांव पर लगाया उसी तरह एकनाथ की इज्जत भी ठाणे और कल्याण दोनों सीटों पर पर दांव पर लगी हुई...

गर्म हवा है, ठंडी हवा भी!

महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ उसे लेकर उनके मन में नरेन्द्र मोदी के प्रति गुस्सा है हालांकि वे यह भी चाहते हैं कि वे प्रधानमंत्री बने रहें।

52 दरवाजों से जलील की सवारी या खैरे या भुमरे की?

बावन दरवाजे वाले संभाजीनगर में इस बार 37 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। लेकिन वास्तविक लड़ाई तीन धड़ों और दो उम्मीदवारों के बीच है।

भाजपा की इस्पाती पकड़, फिर भी गुस्सा।

जालना के बारे में बिना किसी संदेह के कहा जा सकता है कि यह भाजपा का मजबूत किला है। और यह भी कि यहाँ से रावसाहेब दानवे अजेय हैं।

बीड में चौंकाने वाला नतीजा होगा!

महाराष्ट्र की इस सीट पर अकेला मराठा आरक्षण मुद्दा नहीं है। यहां एंटी इन्कंबेंसी की हवा बह रही है।

गजब! उद्धव ठाकरे भीड़ के चहेते

उद्धव तनाव में नहीं हैं, वे प्रसन्नचित्त है और आत्मविश्वास से परिपूर्ण है – मगर इस आत्मविश्वास में न तो अहंकार है और ना ही अकड़।

मोदी की अंडरकरंट, पर काम प्रणीति का!

वर्धा या सतारा के विपरीत शोलापुर में स्थिति साफ नहीं है। मोदी के पक्ष में अंडरकरंट है और मुकाबला मोदी बनाम प्रणीति और देश के विकास बनाम शोलापुर के...

महाराज की गद्दी दांव पर!

इस चुनाव में सतारा की सीट पर सबकी नजर है। यहां मुद्दा मराठा गौरव को फिर से हासिल करने का है। महाराज को वापिस गद्दी दिलवानी है।

बारामती में सिर्फ पवार!

बारामती में चुनाव चिन्ह को लेकर कोई कन्फ्यूजन नहीं है। पार्टी को लेकर कोई कन्फ्यूजन नहीं है। कन्फ्यूजन है तो व्यक्ति और उसके प्रति वफादारी को लेकर

विदर्भः यह चुनाव व्यक्तियों में चुनने का चुनाव!

चुनाव में किसी एक का जादू नहीं है। विदर्भ (दस सीटे) में लोग उद्धव ठाकरे और शरद पवार के प्रति सहानुभूति रखते है।

किसानों की आत्महत्याएं और मशाल!

कसभा क्षेत्र के हर कोने में सरगर्मी, उत्तेजना है। मुकाबला शिवसेना (ठाकरे) के संजयराव देशमुख और एकनाथ शिंदे की शिवसेना की पैराशूट उम्मीदवार राजश्री पाटिल की बीच है।

मोदी को लाना है, तो नवनीत राणा को…

अमरावती का चुनावी घमासान दिलचस्प है। चाहे दिल्ली का मीडिया हो या राजनीति के स्व-घोषित पंडित, सभी अमरावती में दिलचस्पी लिए हुए है।

प्रकाश अम्बेडकर है तो भाजपा क्यों न जीते!

यूपी में मायावती है तो विर्दभ में प्रकाश अम्बेडकर है। और फिर अकोला में खुद प्रकाश अम्बेडकर खड़े है अपनी वंचित बहुजन विकास आघाडी से।

कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन!

‘बहुत कन्फ्यूजन है' यह बात महाराष्ट्र में नागपुर से 85 किलोमीटर दूर वर्धा में हर जगह सुनाई दी। और इसी 26 अप्रैल को वर्धा में वोट पडने है।