Wednesday

26-03-2025 Vol 19

पंकज शर्मा

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स में संवाददाता, विशेष संवाददाता का सन् 1980 से 2006 का लंबा अनुभव। पांच वर्ष सीबीएफसी-सदस्य। प्रिंट और ब्रॉडकास्ट में विविध अनुभव और फिलहाल संपादक, न्यूज व्यूज इंडिया और स्वतंत्र पत्रकारिता। नया इंडिया के नियमित लेखक।

इंडिया-समूह के अंकगणित का बीजगणित

28 दलों के राजनीतिक गठजोड़ ‘इंडिया-समूह’ का बदन ऊपर से देखने में तो इतना गठीला दिखाई देता है कि परसों से शुरू हो रहे साल की गर्मियां आरंभ होते-होते...

संसद परिसर में उड़ती खिल्ली के भोंडे आयाम

नरेंद्र भाई के अगलियों-बग़लियों के भी नहीं। यह व्यग्रता जिस दिन अपनी रजाई झटकेगी, ‘मोशा’-होश ठिकाने आ जाएंगे। तब संभलने का समय नहीं बचा होगा।

इतिहास के निष्ठुर पन्ने और अभागे राहुल

कांग्रेस को आगामिक फटेहाली से महफ़ूज़ रखने के लिए सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी को थोड़ा बेरहम होना पड़ेगा।

फुद्दू प्रजा का ओजस्वी राजा

अगर वे विदा हो गए तो मैं यह सोच-सोच कर ही घुलता रहूंगा कि पूरे एक दशक हमें अपनी ‘गिली गिली गाला’ में उलझाए रखने वाला ऐसा अजब-ग़ज़ब प्रधानमंत्री...

ख़ुदसाख़्ता ‘हिंदू हृदय सम्राट’ नरेंद्र भाई

हिंदू आबादी का 60-65 प्रतिशत हिस्सा नरेंद्र भाई की असहमति में मुट्ठियां ताने खड़ा है तो वे काहे के एकछत्र ‘हिंदू हृदय सम्राट’?

राहुल की बनाई राह पर रपटते नरेंद्र भाई

सच है कि नरेंद्र भाई मोदी का दालान तो और भी सड़ांध भरा है, और भी गलीज़ है, और भी मटमैला है। इसलिए आप पूछ सकते हैं कि मैं...

कारोबारी संसार की घनचक्करी भूलभुलैया

निशिकांत ने आरोप लगाया है कि महुआ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बदनाम करने के मकसद से अडानी समूह के खिलाफ़ संसद में सवाल पूछे।

गाज़ा पट्टी के पेच-ओ-ख़म और गंगा आरती

एक वाहन पर रखे तक़रीबन निर्वस्त्र महिला के शव पर पैर पसारे बैठे हमास के हथियार लहराते पिशाचों की तस्वीर देख कर कौन नहीं हिल जाएगा?

मुद्रा-इतिहास के अश्वेत पन्ने का अंतिम संस्कार

 नरेंद्र भाई के पौरुष से सात साल पहले जन्मे दो हज़ार रुपए के नोट का आज अंतिम संस्कार है। इसलिए मैं इन सात वर्षों की चकरघिन्नी में आपको ले...

कमलनाथ, गहलोत, भूपेश के 23 पर टिका 24

इस साल जब सर्दियों का गुलाबीपन शुरू हो रहा होगा तो पांच राज्यों में भारतीय जनता पार्टी के कमल की सुर्ख़ी अपने चरम उतार पर होगी।

सनातन धर्म के स्वघोषित पर्याय की पगड़ी

अगर आप सोच रहे हैं कि नरेंद्र भाई मोदी अपने पैरों के नीचे से कालीन आसानी से खिसक जाने देंगे तो आप को मतिभ्रम हो रहा है।

कलूटाक्षरों में लिखे जाने वाले इतिहास का दशक

किसी और एक दशक में आपने भारत के प्रधानमंत्री को इतने खिलंदड़ी करतब करते नहीं देखा होगा।

ऊधमबाज़ी से रुआंसा हुआ चंद्रयान

काहे का इसरो? काहे के वैज्ञानिक? चंद्रयान का चांद पर अवतरण हमारे मौजूदा राजनीतिक नेतृत्व की प्रज्ञा और कौशल की उपलब्धि है।

यादों की बूंदों से झांकते सवाल

मनोभाव हाशिए पर कैसे चले गए? सब-कुछ मंचीय-प्रयोजन में तब्दील कैसे हो गया? मेरी यादों की बूंदों से झांकते सवालों का जवाब मिले तो मुझे भी बताइएगा।

लफ़्फाजी, आंकड़े और अनसुनी सिसकियां

प्रधानमंत्री के 132 मिनट के भाषण में 98 बार तालियां बजीं, 22 बार ठहाके लगे, 29 बार उन्होंने मणिपुर शब्द का ज़िक्र किया।

बेताल-युग में झन्नाट-झापड़ की पुण्य-गाथा

नौ साल से चल रहे मायावी संसार का तिलिस्म ढहना शुरू हो गया है। अय्यारों की अय्यारी दरक रही है।

ज़िल्लेसुब्हानी की विदाई के गगनीय संकेत

2024 अपने पर भारी पड़ता देख ज़िल्लेसुब्हानी इन दिनों बिना सोचे-समझे अपनी बनैटी घुमा रहे हैं। विपक्षी राजनीतिक दलों की तुलना वे आतंकवादी संगठनों से करने लगे हैं।

‘कांग्रेस आएबे बारी है, भाजपा जाएबे बारी है’

पूरी तरह साफ़ हो गया है कि साढ़े चार महीने बाद मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में ‘कांग्रेस आएबे बारी है, भाजपा जाएबे बारी है‘।

36 साल, शांति सेना, मैं और आदरांजलि

35 साल पहले, 1988 में, मैं भारतीय शाति सेना के साथ जाफ़ना के जंगलों में था। हमारी शांति सेना राष्ट्रपति जूनियस रिचर्ड जयवर्द्धने के आग्रह पर श्रीलंका पहुंची थी।

सरकार-हरण का दशाननी वाम-तंत्र

अगर भारतीय जनता पार्टी को लग रहा है कि शरद पवार को इस हाल में ले आने से उसे राजनीतिक फ़ायदा होगा तो वह मुगालते में है। उसे कुल...

कुप्पा-कुप्पा हो रहे आराधकों के नाम

अमेरिकी राष्ट्रपति चार वर्ष के अपने कार्यकाल में एक देश के शासनाध्यक्ष को एक बार से ज़्यादा राजकीय यात्रा पर नहीं बुला सकता है।

भूपेश बघेल के बहाने तीस साल पहले की याद

इतना पुराना किस्सा मैं ने इसलिए सुनाया कि आप भूपेश के तजु़र्बों का अहसास कर सकें। यह ऐसे ही नहीं है कि ढाई साल से चला-चली की वेला में...

प्रियंका गांधी के शंखनाद से कमल नाथ की वापसी

कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर कमल नाथ का कद चार दशक से गुलीवराना ही रहा है, लेकिन बावजूद इस के मध्यप्रदेश में कुछ बरस पहले तक वे सिर्फ़ छिंदवाड़ा...

द्वारपाल-मुक्त कांग्रेस की स्थापना का समय

दुनिया-जहान की ख़बरें रखने वाले और बचपन से सियासी पेंचोख़म की आंच देख-देख कर बड़े हुए राहुल-प्रियंका ख़ुद से लिपटी अमरबेलों से इतने अनभिज्ञ कैसे हैं?

नरेंद्र भाई नौ साल चले अढ़ाई कोस

नरेंद्र भाई के राज में जो हुआ है, उसे बहुत बढ़-चढ़ कर दिखाया गया है। जो नहीं हुआ है, उसे बहुत बढ़-चढ़ कर दबाया गया है।

लोकतंत्र की अफ़ीम के चटोरों का देश

पांच बरस की हुकूमत में दोनों को आधे-आधे वक़्त मुख्यमंत्री बनाने के समझौता-प्रयास करने पड़ें तो इसे हम कैसा प्रजातंत्र कहेंगे?

इतना भी क्या चुनाव-पिपासु होना नरेंद्र भाई!

कर्नाटक का आज का रुख तय करेगा कि दक्षिण-विजय के नरेंद्र भाई के सपने का आगे क्या होने वाला है? दक्षिण में कर्नाटक से ज़्यादा उम्मीद भाजपा फ़िलहाल और...

सितमगर से इश्क़ के ख़ब्ती दौर में

अपने पर अत्याचार करने वाले को ही प्रेम करते रहने की गाथाएं भारतीय समाज में कोई कम तो नहीं हैं।

मटरगश्ती और विवशता के बीच झूलते हम

पिछले एक दशक में राजकीय संवेदनाएं जितनी तीखी ढलान पर जितनी तेजी से रपटी हैं, वैसी कभी नहीं लुढ़कीं।

योगी के प्रति मुग्ध भाव का नया समाजशास्त्र

जिन्हें यह आलाप लगाना है कि न्याय संवैधानिक तौर-तरीक़ों से होना चाहिए, वे अपना यह आलाप लगाते रहें।

एकता के सात फेरे और एक अदरक-पंजा

क्या यह आसान होगा? क्या पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, मार्क्सवादी पार्टी और कांग्रेस के जन-जन एक-दूसरे के लिए रूह-अफ़ज़ा हो पाएंगे?

जमूरों के भरोसे चलता आभासी-संसार

अब राहुल हों या नरेंद्र भाई, इतना बड़ा देश है, किस-किस को फॉलो करें? जिसे न करें, वही मुंह फुला लेगा।

नक्कालों की नाली में बहता राहुल का पसीना

या तो कांग्रेसी अपने को पूरी तरह राहुल गांधी पर छोड़ दें या राहुल गांधी ख़ुद को पूरी तरह कांग्रेस पर छोड़ दें - इसके अलावा कांग्रेस के उद्धार...

तवारीख़ी तहरीर बदलने की ख़ुशबू

इसलिए, आप का आप जानें, मुझे तो इस दौर से तवारीख़ी तहरीर बदलने की ख़ुशबू आ रही है।

वह काला अध्याय और यह काला अध्याय

राहुल गांधी को लोकसभा से निष्कासित करने की बातें उड़ाई जा रही हैं, तो क्या राहुल सोलहवें ऐसे ‘अभियुक्त’ बनने की कगार पर पहुंच गए हैं, जिन्हें निष्कासन की...

नरेंद्र भाई के सौ अपकर्म और एक सत्कर्म

एक बात के लिए तो नरेंद्र भाई को दाद भी देनी पड़ेगी कि उन्होंने भाजपा में परिवारवाद का तक़रीबन अंतिम संस्कार कर दिया है

प्रधान-मंत्री कोई हो, प्रधान-मंत्र अब राहुल हैं

मैं मानता हूं कि राहुल की वैयक्तिक और राजनीतिक क्षमताओं के बारे में ऊहापोह की स्थिति से देश अब पूरी तरह बाहर आ गया है।

घनचक्करी झूले पर झूलता कांग्रेस अधिवेशन

मुझे लगता है कि आज़ादी के बाद हो रहा 31वां कांग्रेस-अधिवेशन अब तक का सबसे नीरस और निरर्थक आयोजन साबित होने वाला है।

खुल्लमखुल्ला बेपर्दा हुए पर्दानशीं

बुधवार को लोकसभा में और बृहस्पतिवार को राज्यसभा में प्रधानमंत्री के भाषणों का पोलापन आराधकों के लिए हो-न-हो, मेरे लिए तो सचमुच बेहद फ़िक्र की बात है।

’चश्मदीद का बहीखाता’ पन्ने-दर-पन्ने

जितनी वज़नदार आपकी दुआएं होंगी, ‘चश्मदीद का बहीखाता’ उतनी जल्दी आपके हाथों में होगा।

भोंपू-पत्रकारिता का अमृत-दशक

भोंपू-पत्रकारिता के इस एक दशक ने हमें जो पाठ पढ़ाए हैं, उन की विलोम-यात्रा, अगर आरंभ भी हो गई तो, क्या अगले दो दशकों में भी अपनी मंज़िल हासिल...

खम्मम के शिगूफ़े का पेच-ओ-ख़म

सकल-विपक्ष की घालमपेल ही नरेंद्र भाई की आस का तिनका है। विपक्ष जितना बिखरेगा, उतना ही वे निखरेंगे।

सियासत के सूखे पठार से रूमानियत की उम्मीद

मैं नहीं मानता कि उनकी पदयात्रा ने सब-कुछ बदल कर रख दिया है, लेकिन उन्होंने दो व्यक्तित्वों के फ़र्क़ के हर्फ़ आम दिमाग़ों में चस्पा कर दिए हैं।

ठूंठ-राज के अनंत प्रतीक्षालय में

सियासत बहुत हो ली। नए साल में ज़रा ज़िंदगी से जुड़े बाकी आयामों पर भी नज़र डालें। एक राजनीति को ही राजनीतिकों ने रसातलगामी नहीं बना दिया है।

आप का समय शुरू होता है, अब!

2023 के गर्भ से 2024 का जन्म होगा। 2023 के प्रसव-काल में जैसी देखभाल हम कर पाएंगे, जैसा खानपान हम दे पाएंगे, वैसी ही संतान 2024 की गोद में...