Tuesday

25-03-2025 Vol 19

पंकज शर्मा

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स में संवाददाता, विशेष संवाददाता का सन् 1980 से 2006 का लंबा अनुभव। पांच वर्ष सीबीएफसी-सदस्य। प्रिंट और ब्रॉडकास्ट में विविध अनुभव और फिलहाल संपादक, न्यूज व्यूज इंडिया और स्वतंत्र पत्रकारिता। नया इंडिया के नियमित लेखक।

ठूंठ रहनुमाओं के मुल्क़ में

विवाह अब यज्ञ-वेदी के चारों तरफ़ घूम कर नहीं, प्री-वेडिंग, वेडिंग और पोस्ट-वेडिंग के कैमरा-केंद्रित चोंचलों के मंच पर संपन्न होते हैं।

डॉन क्विक्ज़ोटों तले छटपटाता ज्योतिष विज्ञान

बचपन में मुझे दादा-दादी के गांव में पढ़ने के लिए भेजा गया था और बाद में भी हर साल गर्मियों की छुट्टियों का ज़्यादातर समय अपने गांव में ही...

मुट्ठी तानिए, मुट्ठी से मुक्ति के लिए

कुंभ सनातन की समानता का महायज्ञ है। उसे किसी व्यक्ति या दल विशेष उन्मुख एकजुटता की तरह प्रचारित करने की काइयां करतूत के भीतर ज़रा गहराई से झांकिए।

हो गया नरेंद्र भाई का ट्रंप-कार्ड री-चार्ज

मनमौजी ट्रंप से अपने रिश्तों के इस री-चार्ज से नरेंद्र भाई घरेलू सियासत में निश्चित ही मजबूत होंगे।

छाती पर बंधा छप्पन किलो का पत्थर

delhi election result: हमारे देश का निर्वाचन आयोग समूचे प्रतिपक्ष द्वारा मांगी जा रही जानकारियां नहीं देने पर इस तरह क्यों अड़ा हुआ है?

समांतर सोच का कंकर आप के तालाब में

journalism news : आप सोच रहे होंगे कि आज मैं यह सफाईनुमा प्राक्कथन क्यों लिख रहा हूं?

वाह उस्ताद, वाह !

बिगुलवादकों ने ज़ोर-शोर से यह धुन बजानी शुरू कर दी है कि राहुल ने भारत गणराज्य के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ दिया है। इंडिया समूह की सीटें पिछली बार से...

समरभूमि और मुमुक्षु भवन के दोराहे पर

यह बेगानी शादी के अब्दुल्लाओं के आपस में लड़-मरने का दौर है।

पूर्णविराम की ऊहापोह से उपजा संकल्प

वैसे तो इस विषैले अमृतकाल में इतना पुण्य भी कम नहीं है कि आप ने मूंछों पर ताव देना छोड़ने की कसम भले ही खा ली हो, मगर अधम...

किसी एक की सल्तनत के अंत का आरंभ

खिल भारतीय संत समिति के महासचिव जितेंद्रानंद सरस्वती से ले कर रामभद्राचार्य तक और चक्रपाणि जैसों से ले कर देवकीनंदन ठाकुर जैसों तक को मोहन भागवत की कही बात...

राहुल-प्रियंका और कांग्रेस की मध्यम-पंक्ति

जब मैं यह सवाल उठा रहा हूं तो मेरा सवाल इंडिया-समूह के कथित साथियों के बारे में नहीं है। इंडिया-समूह तो समझ लीजिए कि तिरोहित हो चुका है।

प्रियंका गांधी के संसद प्रवेश का बीजगणित

भले ही उत्तर प्रदेश में लड़की के न लड़ पाने की तोहमत हम प्रियंका पर मढ़ दें, मगर अपनी नई भूमिका में उन की संप्रेशण दक्षता देश भर की...

हिंदुत्व की म्यान और सजते धनुष-बाण

पिछले दस साल में, और ख़ासकर पिछले पांच बरस में, मैं ने संघ-प्रमुख मोहन भागवत जी का जो आचार-विचार-व्यवहार देखा है

संसार का कोतवाल बन गए दोस्त के नव-युग में

इस साल 4 जून के बाद बेतरह लड़खड़ा गई नरेंद्र भाई की देहभाषा को 8 अक्टूबर को थोड़ा सहारा मिल गया था।

अगली दीवाली तक का प्रश्नपत्र

दीवाली आई। दीवाली चली गई। दीवाली फिर आएगी। दीवाली फिर चली जाएगी। पटाखों पर पाबंदी के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की हम ने कोई परवाह नहीं की।

विपक्षी गठरी का नंगधडंग जर्जरपन

नरेंद्र भाई की टोपी में अगर ईवीएम-फीवीएम तिकडमों का कोई खरगोश है भी तो इस हक़ीक़त से कैसे इनकार करें

प्रतिपक्षी अक़्ल‘मंदों’ की अद्भुत अंतर्दृष्टि

दुनिया भर के देशों में भारतवंशी समाज ने दशकों के परिश्रम से राजनीतिक, कारोबारी और सांस्कृतिक प्रभाव हासिल किया है।

कार्यशैली-कल्प का अंतिम अवसर

हरियाणा का चुनावी दृश्य कांग्रेस के भीतर अपनी-अपनी जागीरदारी कब्जाए बैठे मतलबपरस्तों के थू-थू कर्मों ने भी रचा है।

44 साल में सियासी ओलों की पहली बरसात

भारतीय जनता पार्टी के भीतर विकट घमासान मचा हुआ है। 8 अक्टूबर से यह आंतरिक खींचतान और तेज़ी से बढ़ने वाली है।

नकार-स्वीकार की आधारभूमि का धूसरपन

राहुल जिन पर आंख मूंद कर भरोसा करते हैं, उन में से कुछ की नीयत के खोट इतने घिनौने हैं कि जिस दिन राहुल को मालूम होंगे, वे स्वयं...

हे मंगलमूर्ति! इन को भी क्षमा करना, उन को भी

भारत के प्रधान न्यायाधीश महोदय को यह बुद्धि-विवेक कहां से मिला कि वे भारत के प्रधानमंत्री जी को अपने यहां गणेश-आरती करने के लिए निमंत्रित करें?

फ़िदा-हुसैन नहीं, न्याय-देवता की ज़रूरत

जन्मजात अंधखोपड़ियों ने पूरे दस बरस कथन और लेखन के अक्षरविश्व में जैसा नग्न-धमाल मचाया, उसे ऐसे ही विस्मृत कर देना नादानी होगी।

सियासी मध्यायु की बिगुल ध्वनि

अगले पांच महीनों में पांच प्रदेशों के 619 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव होंगें हरियाणा और जम्मू-कश्मीर की 90-90 सीटों के लिए मतदान की समय सारिणी का ऐलान निर्वाचन आयोग...

तय है नरेंद्र भाई की मध्यावधि-विदाई

एक बात तो तय है कि अगर तीन बरस बीतते-बीतते लोकसभा के मध्यावधि चुनाव होने की स्थिति नहीं आई तो 2029 का आम चुनाव नरेंद्र भाई मोदी की अगुआई...

अपनी ‘जात’ तो नहीं पता, आप की पता चल गई

‘जिन्हें अपनी जात नहीं पता’, उन्हें आप की जात तो पता चल गई हुज़ूर। मैं भी आप की जात को ले कर बहुत वक़्त ख़ुशफ़हमी में था।

मनःस्थिति और नाट्यमंचन का अंतर्विरोध

मगर जैसा मैं ने कहा कि इच्छा पूरी हो जाने से इच्छाओं का विराम हो जाए, ऐसा कहां होता है? वही हुआ। किसी की ख़्वाहिशें अगर यूं ही वक़फ़ा...

मटमैले पहाड़ों से रिसता दर्दीला सौंदर्य

मैंने इस महीने का दूसरा सप्ताह लद्दाख में गुज़ारा। लद्दाख मैं कई बार गया हूं। मगर इस बार के लद्दाख ने मुझे नया नज़रिया दिया। लद्दाख के दिन इन...

राहुल के छकड़े से कांपती नरेंद्र भाई की बग्घी

राजनीतिक मौसम तेज़ी से पहलू बदल रहा है। सो, अपनी आंखें मसलिए और इस बदलती करवट के इशारे समझिए। 

आर-पार के संग्राम की अवतरणिका

ये पांच बरस भारत के सियासी महाभारत की लड़ाई का अठारहवां दिन साबित होंगे। इस के संकेत अठारहवीं लोकसभा की शुरुआत होते ही मिल गए हैं।

मरियल कुंडियां और प्रतिपक्ष का तात्विक कर्म

पक्ष-प्रतिपक्ष अपनी-अपनी भूमिकाओं की सार्थकता सिद्ध करें और ये पांच बरस ‘सचमुच के अच्छे दिन’ हमें लौटा दें

संग्राम सत्रहवें दिन में आ पहुंचा है

नरेंद्र भाई हवा का रुख भांप गए थे कि स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं कर पाने की दलील दे कर आरएसएस इस बार उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनने देगा।

अब लद्दू मत बनिए नरेंद्र भाई

अगर वे 2014 की ही तरह 2024 में भी प्रधानमंत्री बनने के लिए अड़े रहे तो अपनी डोली ढोने वाले कहार इस बार कहां से लाएंगे?

‘ध्यान’ की पंचवर्षीय योजना का उपसंहार

‘ध्यान’ अगर ‘ध्यान’ है तो उसे मतदान के अंतिम चरण की पूर्व संध्या से शुरू कर मतदान ख़त्म होने पर ख़त्म करना ही क्यों ज़रूरी है?

‘मोशा’- झोले से झांकता ग़लतियों का ज़ख़ीरा

मोशा-क्लब से यह महा-भूल हो गई कि उस ने पिछली बार जीते अपने कुल 124 सांसदों को बड़े बेआबरू हो कर बाहर जाने पर मजबूर किया।

अकिंचनों की धरती पर परमात्मा का दूत

सब से ज़्यादा प्रभावित मुझे नरेंद्र भाई के उस इंटरव्यू ने किया, जो उन्होंने वराणसी के नमो घाट के सामने गंगा मैया की गोद में खड़े क्रूज़ पर चढ़...

निश्चिंत दिखते नरेंद्र भाई की बेचैनी

ज़्यादा-से-ज़्यादा मतदान करने का आग्रह करते वक़्त उन्होंने ‘भारी’ शब्द को जिस अंदाज़ भारी बनाया, उस में थोड़े विचलन का भाव झलक रहा था। 

नरेंद्र भाई भूल गए थे कि बड़ा तो बड़ा ही होता है

नरेंद्र भाई उम्र में मोहन जी 6 दिन छोटे हैं। और उन्हें मालूम होना चाहिए कि बड़ा-तो-बड़ा ही होता है।

सफ़ेद झूठ की काली मूसलाधार

नरेंद्र भाई मोदी ऐसी आंय-बांय-शांय मुद्रा में आ गए हैं कि सफ़ेद झूठ की काली मूसलाधार करने में इस बार सारी चौहद्दियां पार कर गए हैं।

कारकूनों के कुचक्र में कसमसाती कांग्रेस

139 बरस पुरानी पार्टी का सारा क्रियान्वयन-तंत्र सियासी सहभागियों के बजाय कारिंदों के सुपुर्द हो गया।

दर-दर दस्तक का गूढ़ार्थ

272 के स्पष्ट बहुमत का आंकड़ा भी छू पाना भाजपा के लिए दूर के ‘चंदा’मामा साबित होती दिख रही है। lok sabha election 2024

एक स्वयंसेवक के बेनूरीपन की फ़िक्र

नरेंद्र भाई अपने चेहरे और नाम के बूते काठ के किसी भी पुतले-पुतली को चुनावी वैतरिणी पार कराने की क्षमता अब खो चुके हैं। Lok Sabha election 2024

प्रश्नों की उमड़-घुमड़ का अंतर्व्यूह

ज़मीनी हालात ऐसे लग रहे हैं कि इन गर्मियों में स्पष्ट बहुमत के 272 अंक तक पहुंचने में भाजपा के पसीने छूट जाएंगे।

‘आएगा तो मोदी ही, आएगा तो मोदी ही’

 ‘आएगा तो मोदी ही, आएगा तो मोदी ही’ की रट जैसे-जैसे नरेंद्र भाई मोदी ख़ुद ही ज़ोर-ज़ोर से लगाने लगे हैं, मुझे रायसीना पहाड़ी पर वापस आने को ले...

नरेंद्र भाई की फ़िक्र में घुलता मैं

12 प्रदेशों में ख़ुद भाजपा की और 6 में सहयोगियों की सरकारें होते हुए भी लोकसभा के चुनाव में नरेंद्र भाई की अंक-मनोकामना आख़िर कैसे पूरी होगी?

दादी-पिता से ज़्यादा नसीब वाले हैं राहुल

राहुल नसीब वाले हैं कि बेमुरव्वत हो कर उन के बार-बार यह कहने पर भी कि ‘जिसे जाना है, जाए, जिसे रहना है, रहे’ सिर्फ़ एकाध दर्जन छोटे-मंझले-बड़े नेता...

विपक्ष के आकुल लपोरीलालों की ना-लायकी

विपक्षी दलों को एकमंचीय करने और उन्हें एकाकार बनाए रखने की प्रक्रिया अगर सोनिया की सीधी रहनुमाई में चली होती तो इंडिया-समूह के राजनीतिक दलों की संख्या 28 से...

तालठोकू फ़रमान और कांग्रेस का इनकार

सोनिया गांधी इस रामनवमी पर रामलला के दर्शन करने अयोध्या जाएं। मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी जाएं तो और अच्छा।

फुगावों की मादकता से मुक्ति का समय

सिर्फ़ इच्छाधारी होने भर से अगर इच्छाएं पूरी होने लगतीं तो फिर बात ही क्या थी? फिर इच्छाएं अगर आसमानी हों तो वे यूं ही ज़मीन पर नहीं उतर...