Sunday

09-03-2025 Vol 19

मनु श्रीवत्स

लगभग 33 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय।खेल भारती,स्पोर्ट्सवीक और स्पोर्ट्स वर्ल्ड, फिर जम्मू-कश्मीर के प्रमुख अंग्रेज़ी अख़बार ‘कश्मीर टाईम्स’, और ‘जनसत्ता’ के लिए लंबे समय तक जम्मू-कश्मीर को कवर किया।लगभग दस वर्षों तक जम्मू के सांध्य दैनिक ‘व्यूज़ टुडे’ का संपादन भी किया।आजकल ‘नया इंडिया’ सहित कुछ प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिख रहा हूँ।

कांग्रेस की गलतियां, बर्बादी की ‘सुपारी’

जिस अनमने ढंग से कांग्रेस जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव लड़ रही है उसे देखते हुए ऐसा लगता है मानों किसी ने जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस को बर्बाद करने की बकायदा ‘सुपारी’...

हताश और हारे गुलाम नबी!

जैसी संभावना थी ठीक वैसा ही हुआ, गुलाम नबी आज़ाद ने राजनीति के मैदान में लगभग अपने हथियार डाल दिए हैं।

धारा 370 की बजाय नए मुद्दे हावी!

पूर्ण राज्य का दर्जा समाप्त कर दिए जाने से कश्मीर के साथ-साथ जम्मू के लोगों में भी कहीं न कहीं नाराज़गी है।

बिना डर के चुनाव के लिए तैयार कश्मीर!

हुर्रियत कांफ्रेंस जैसे संगठन अब सक्रिय नही हैं। यह एक बड़ा बदलाव कश्मीर में हुआ है।

उमर व महबूबा दोनों की हार का क्या अर्थ?

क्या कश्मीर की राजनीति बदल रही है? लोकसभा चुनाव के परिणाम तो यही बता रहे हैं कि कश्मीर घाटी की राजनीति में तेजी से बड़े बदलाव हो रहे है।

कश्मीर घाटी में वर्षों बाद बैखोफ मतदान

कश्मीर घाटी ने कई वर्षों बाद दिल खोल कर और पूरी आज़ादी के साथ मतदान किया।

जम्मू-कश्मीर की राजनीति में इल्तिजा मुफ्ती

इल्तिजा मुफ्ती लगातार चुनावी सभाओं को संबोधित कर रही हैं और लोग बड़ी संख्या में उन्हें सुनने पहुंच रहे हैं।

आज़ाद हो गए कश्मीर के औवेसी!

मौजूदा भारतीय राजनीति में जितनी जल्दी गुलाम नबी आज़ाद की विशाल छवि आम लोगों के सामने ध्वस्त हुई है शायद ही दूसरे किसी नेता की छवि ऐसे हुई हो।

लाल सिंह से कांग्रेस को जम्मू में संजीवनी

इस बार भी उधमपुर सीट पर चौधरी लाल सिंह का सामना दो बार के सांसद व केंद्र में मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह के साथ ही होगा। jammu kashmir lal...

साल भर में ही अकेले, अलग-थलग आज़ाद

हालत यह है कि साल समाप्त होते-होते आज़ाद का कुनबा पूरी तरह से बिखर चुका है और आज़ाद पूरी तरह से अलग-थलग व अकेले पड़ चुके हैं।

आज़ाद के दावों का सच

या तो आज़ाद इतिहास भूल गए हैं या जानबूझकर ऐसी बातें लिख-बोल रहे हैं ताकि कुछ दिन सनसनी बनी रहे और वे राजनीतिक रूप से प्रासंगिक भी बने रहें।