Wednesday

02-04-2025 Vol 19

गिरिजा शंकर

श्रीवर्धन के रंगकर्म की ‘सनसनी’

“सनसनी“ के अपने अनुभव से श्रीवर्धन पूरी तौर पर संतुष्ट है। उनका मानना है कि इस शो के जरिये अभिनय करने का शौक भी पूरा हो रहा है और...

‘शरबत-ए-आज़म’ यानी कुंए का मीठा पानी

सचिन का फोन आया कि उनके नये नाटक का मंचन है और आपको आना है। अन्य व्यस्तताओं के कारण मेरा जाना संभव नहीं था।

“यूं ही साथ-साथ चलते”

यह नाटक यानी नाटक की कथावस्तु उनके और उनके जैसे अनगिनत मध्यवर्गीय दंपत्तियों की कहानी है जो पारिवारिक व अन्य जिम्मेदारियों के चलते सहज प्रेम को भूल से गये...

संवाद और संवाद अदायगी का सम्मोहन

मंच पर रोशनी होती है और नाटक की नायिका प्रवेश लेती है। प्रवेश लेते ही वह दर्शकों से एकालाप करने लगती है। salim arif gudamba

अभिनय इसी का नाम है

इस नाटक की एक और खूबी रिपीट वेल्यू है, यानी दर्शक इसे बार-बार देखना चाहेगा। यानी यह पूरी तरह पेशेवर रंगमंच है।

नफरत को मोहब्बत में बदलता नाटक

इस बेहद संवेदनशील कथानक को अपने नाटक में पूरी संवेदना के साथ प्रस्तुत करने का साहसिक काम निदेशक दौलत वैद ने किया है।

यायावरी रंगमंच का सितारा

लकीजी की स्कूली बच्चों तक नाटक को पहुंचाने की रंगयात्रा बदस्तूर जारी है, बिना किसी सरकारी या संस्थागत आर्थिक सहायता के।

एक्शन, लाइट, डायरेक्शन…

1990 में पटना के निर्माण कला मंच द्वारा संगीत नाटक अकादमी और संस्कृति विभाग बिहार सरकार के सहयोग से स्लम बस्तियों में रहने वाले बच्चों के लिये रंगमंच कार्यशाला...

‘अंधा युग’ पेशेवर नाटक की आहट

भोपाल के रंगमंच में बरसों बाद या कहूं पहली बार किसी निजी नाट्य संस्था द्वारा पेशेवर अंदाज में नाटक की प्रस्तुति की गई।

हबीब तनवीर की याद में

रजा फाऊंडेशन द्वारा छत्तीसगढ़ शासन के संस्कृति अकादमी के सहयोग से रायपुर में हबीब साहब की स्मृति में दो दिवसीय आयोजन किया गया।

‘किलकारी’ की रंगमंचीय गूंज

कुछ साल पहले चर्चित फिल्म ’सुपर-30’ का निर्माण हुआ था। इस फिल्म में कलाकारों के चयन के लिये प्रसिद्ध कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा पटना आये हुए थे।

एक जुनूनी रंगकर्मी का रंग आंदोलन

देव के रंगमंच की शुरुआत दिल्ली में अस्मिता थियेटर की एक कार्यशाला से हुई।

दो दशक बाद फिर बज्जू भाई का ‘अंधा युग’

आवाज और संवाद का जादू का असर कलाकारों के परिपक्व अभिनय से और बढ़ गया था। सवा दो घंटे की लंबी अवधि का होने के बाद भी नाटक एक...

थियेटर की महक है “कटहल” में

थियेटर व फिल्मों का जितना करीबी रिष्ता इन दिनों देखने को मिलता है, वैसा पहले शायद नहीं रहा।

दमन का कॉमिक प्रतिकार है ‘बागी अलबेले’

मैं किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में सोचता हूँ जिसे हंसी ही नहीं आती और जो कभी हंसा ही नहीं। क्या वह नाटक ’बागी अलबेले’ देखते हुए भी ऐसा...