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टाईटन का फितूरी रोमांच!

टाईटेनिक विचित्र जुनून का नाम है। 111 साल पहले समुद्र में डुबे टाइटैनिकके प्रति कौतुकता जुनून की हद तक है।इसके एक सदी से भी ज्यादा समय से पड़े अवशेषों में लोगों की इतनी रूचि, उत्सुकता और आकर्षण है कि मुझे तो समझ नहीं आता कि ऐसा क्यों है?

सवाल है क्या हमें जिंदगी और मौत के बीच झूलते हुए सन् 1912 में हुई एक त्रासदी के अवशेषों की झलक केवल इसलिए देखनी चाहिए क्योंकि हमें खतरों से खेलना है, क्योंकि हमें रोमांच चाहिए? इसी जुनून ने पिछले हफ्ते पांच लोगों की जान ले ली। इस दुर्घटना के बाद ‘सपनों के जहाज’ के प्रति सम्मोहन की चर्चा एक बार फिर होने लगी है।

टाइटैनिक के समुद्र में समाने की घटना के प्रति आर्कषण और जिज्ञासा का भाव यदि आज भी महसूस किया जा रहा है तो उसका एक मुख्य कारण है जेम्स कैमरून द्वारा 1997 में बनाई गई सुपरहिट फिल्म ‘टाईटेनिक’, जिसने कई पुरस्कार जीते थे।उसके बाद टाईटेनिक की त्रासदी से प्रेरित किताबों, फिल्मों, वीडियो गेम्स और म्यूजिकल्स की बाढ़ आई। शोधकर्ताओं को दशकों तक खोज और बहस-मुबाहिसे करने का मसाला मिला। टाइटैनिक की दुर्घटना को अमर बनाने के लिए कम से कम सात मोबाइल संग्रहालयों पर बड़ी रकम खर्च की गई है। इनसे उतनी ही कमाई भी हुई है। ये संग्रहालय और इनमें प्रदर्शित वस्तुएं पूरी दुनिया का चक्कर लगाती रहती हैं।

एटलांटिक महासागर की गहराईयों में डूबने के 111 साल बाद भी यह बदनसीब लक्जरी जहाज खबरों में बना हुआ है। इसके मलबे की नई-नई तस्वीरें जारी होती हैं, इसकी नई-नई प्रतिकृतियां बनाई जाती हैं और समुद्र के तल से इसके बचे हुए टुकड़ों को सतह पर लाने के अभियान चलते रहते हैं। पिछले कुछ सालों से टाइटैनिक टूरिज्म भी शुरू हो गया है।

टाईटन नाम के एक सबमर्सिबिल (पनडुब्बी जैसा पोत) में एक बार में पांच लोगों को टाइटैनिक के अवशेष दिखाने समुद्र के तल पर ले जाया जाता है। ओशनगेट एक्सपीडिशन्स नाम की एक कंपनी इन यात्राओं का संचालन सन् 2021 से कर रही है। हर यात्री को 2.5 लाख अमरीकी डालर चुकाने होते हैं। समुद्र के तल तक की इस यात्रा, जिसमें जाहिर है जोखिम होता ही है, के लिए आसानी से ग्राहक मिल जाना इस बात का सुबूत है कि टाइटैनिक किस हद तक लोगों के दिलो-दिमाग पर, उनकी कल्पना में छाया हुआ है।

और फिर वह टाइटन भी गायब हो गया। पूरी दुनिया मानो सन्न रह गई। अखबारों ने इस खबर को पहले पन्ने पर छापा और यात्रियों को ढूंढने के लिए कई देशों की कई एजेसिंयों ने समुद्र के उस हिस्से में डेरा डाल दिया जहाँ इसे पानी में उतारा गया था। इस खोज में कुछ भी नया एक बड़ी खबर बन जाता था। रात-दिन चल रहे इस कवरेज को देखने के लिए लोग अपने टीवी सेटों, मोबाईल फोनों और सोशल मीडिया पेजों से चिपके रहे। और हां, हम सबने गूगल बाबा से पूछा कि सबमर्सिबिल और सबमरीन में क्या अंतर होता है।

जेम्स केमरून, जो कि एक अनुभवी अंडरवाटर खोजी भी हैं और आरएमएस टाईटेनिक के अवशेषों की 33 यात्राएं कर चुके हैं, ने कुछ खरी-खरी बातें कहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं इस दुर्घटना और टाइटैनिक त्रासदी के बीच समानताओं से अचंभित हूं। टाइटैनिक के कप्तान को भी बार-बार चेताया गया था कि समुद्र में बर्फ के पहाड़ तैर रहे हैं। परंतु वह पूरी गति से अमावस की उस रात आगे बढ़ता गया। और नतीजे में सैकड़ों लोग मारे गए”।केमरून ने एबीसी न्यूज को बताया, ‘‘इस मामले में भी चेतावनियों की उपेक्षा की गई। और नतीजे में ठीक उसी जगह पर एक और त्रासदी हुई”।उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में गहरे समुद्र में गोताखोरी होती रहती है। ऐसे में इस तरह की दुर्घटना हो जाना सचमुच आश्चर्यजनक है”।केमरून के नेतृत्व में समुद्र की अतल गहराईयों तक पहुंचने में सक्षम एक सबमर्सिबिल का निर्माण किया गया था और उसमें बैठकर वे धरती के सबसे गहरे समुद्रतल पर अकेले जाने वाले पहले व्यक्ति बने थे। मारियाना ट्रेंच में स्थित चैलेंजर डीप नामक इस स्थान से ज्यादा गहरी जगह के बारे में मनुष्य आज तक तो नहीं जानता।

केमरून ने यह खुलासा भी किया कि गहरे समुद्र में काम करने वाले कई लोगों और विशेषज्ञों ने ओशनगेट को मेल लिखे थे जिनमें उन्होंने यह आशंका जाहिर की थी कि कंपनी जो कर रही है उसमें बहुत जोखिम है। और यह भी कि इस तरह के पोत में यात्रियों को ले जाने के पहले पोत की मजबूती की जांच और उसका प्रमाणीकरण किया जाना चाहिए। परंतु इन चिंताओं और चेतावनियों के बाद भी टाइटन की यात्राएं जारी रहीं और अपनी अंतिम यात्रा में अन्दर हवा का दबाव कम होने से वह पिचक कर धातु का एक लौंदा बन गयी।

टाइटैनिक के डूबने के बाद से समुद्र में कई त्रासदियां हो चुकी हैं। टाइटन की दुर्घटना के कुछ ही दिन पहले 750 प्रवासियों को ले जा रही मछली पकड़ने की एक नौका भूमध्य सागर में डूब गई थी। इसमें सवार लोगों में से ज्यादातर पाकिस्तानी और अफगान थे और वे सब इटली जा रहे थे। इस जहाज की डेक के नीचे 100 बच्चे थे। इस दुर्घटना में कितने लोग मारे गए यह अभी साफ नहीं है। पिछले कुछ सालों में इस तरह की कई नावें और जहाज डूब चुके हैं। इन दुर्घटनाओं में सैकड़ों प्रवासी मारे गए और सैकड़ों गायब हैं। परंतु न तो पश्चिमी मीडिया, न वहां की सरकारों और ना ही वहां के लोगों ने कभी इन दुर्घटनाओं को उतनी तवज्जो दी जितनी कि पांच रईस सैलानियों की मौत को दी है। समुद्र में डूबे प्रवासियों को ढूंढ़ने की कोशिश बहुत अनमने ढंग से की गई जबकि कुबेरपति पर्यटकों की खोज में जमीन-आसमान एक कर दिया गया। प्रवासियों को उनकी मौत के लिए खुद जिम्मेदार ठहराया जाता है। हमें मीडिया यह नहीं बताता कि उनके परिवारों की बदहाली, गरीबी और भूख के चलते वे मजबूर होकर छोटी-छोटी नावों में समंदर के रास्ते अपने स्वर्ग की तलाश में निकलते हैं। इसके विपरीत इन पांच रईसों के शोक में मानों पूरी दुनिया दुःखी थी। जिंदगी में तो गैरबराबरी है ही, मौत में भी गैर-बराबरी है।

हर जान कीमती होती है। और हर मौत दिल तोड़ने वाली। परंतु जो लोग आजादी और पेट भर रोटी की तलाश में जान गंवा देते हैं उनकी त्रासदी उन लोगों से कहीं अधिक गंभीर है जो केवल अपनी रोमांचक यात्राओं की सूची में एक और नाम जोड़ने के लिए खतरे उठाते हैं। इस बात की संभावना बहुत कम है कि समुद्र के तल पर बिखरे इतिहास के अवशेषों की तलाश में इस तरह की दुर्घटना अगले कुछ सालों में फिर से हो। परंतु बेहाल प्रवासियों से भरी नावें डूबती रहेंगीं। अगर एटलांटिक महासागर के तल में सपनों का जहाज है तो भूमध्य सागर भी सपनों की कब्रगाह बन चुका है। सन् 2014 से लेकर अब तक इसमें 25,000 लोग डूबकर मर चुके हैं।

केमरून ने कहा कि अवशेष हमें कहानियां सुनाते हैं और हमें हमारे बारे में कुछ बताते हैं। इन दोनों त्रासदियों ने हमें आईना दिखाया है। एक ओर है अतीत के प्रति आकर्षण के वशीभूत हो फफूंद से ढंके टाईटेनिक के अवशेषों को छूने की इच्छा। दूसरी ओर है समुद्र के गर्भ में आज समा रहे लोग।

टाईटेनिक के प्रति मोह के कारण होने वाली त्रासदियों को अब और नहीं होने देना नहीं चाहिए। टाईटेनिक डूब चुका है।उसे हमें अब भुलाकर आगे बढ़ना चाहिए। (कापी अमरीश हरदेनिया)

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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