कह सकते हैं कि देश की सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी सीपीएम के पास ज्यादा विकल्प नहीं थे। लगभग सभी राज्यों में उसका संगठन बहुत कमजोर हो गया है और दूसरी पीढ़ी के नेता तैयार नहीं हुए हैं। उसके पास सिर्फ केरल में संगठन मजबूत है और इसलिए केरल के नेता को सीपीएम का महासचिव बनाया गया है। लेकिन इसके पीछे कहीं न कहीं केरल के विधानसभा चुनाव का भी मामला है। गौरतलब है कि केरल में अगले साल मई में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। पिछली बार सीपीएम ने इतिहास बदला था। पांच साल पर सत्ता बदलने के इतिहास को पलटते हुए सीपीएम ने लगातार दूसरी बार कांग्रेस को हरा कर सत्ता हासिल की थी। अब 10 साल के बाद फिर सीपीएम जीत जाए इस पर पार्टी नेताओं को भी संदेह है।
ध्यान रहे पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के गठबंधन यूडीएफ ने राज्य की सभी 20 लोकसभा सीटें जीतीं। राहुल गांधी वायनाड से दूसरी बार जीते थे लेकिन उन्होंने इस्तीफा दे दिया और प्रियंका गांधी वाड्रा वहां से सांसद बनी हैं। ऊपर से सीपीएम सरकार के खिलाफ 10 साल की एंटी इनकम्बैंसी है। तभी ईसाई समुदाय से आने वाले एमए बेबी पार्टी के बहुत काम आ सकते हैं। ईएमएस नंबूदरीपाद के बाद वे केरल के दूसरे व्यक्ति हैं, जो सीपीएम महासचिव बने हैं। प्रकाश करात केरल के रहने वाले थे लेकिन जीवन भर तमिलनाडु (पुराने मद्रास) में और दिल्ली में रहे। वे दिल्ली कमेटी से सीपीएम की सेंट्रल कमेटी और पोलित ब्यूरो के सदस्य बने थे। दूसरे, एमए बेबी सीपीएम के पहले महासचिव हैं, जो ईसाई समुदाय के हैं। हालांकि वे अपने को नास्तिक कहते हैं लेकिन अस्मिता की राजनीति में यह ज्यादा मैटर नहीं करता है। तभी उनके जरिए सीपीएम को ईसाई वोट एकजुट होने का भरोसा है। उसको यह भी लग रहा है कि केरल के लोग दिल्ली के लिए कांग्रेस को और राज्य के लिए सीपीएम को वोट करेंगे।